डर क्या है? जाने घबराहट और डर खत्म करने का मूल-मंत्र|Mantra to eliminate panic and fear|
मनुष्य का जीवन पल पल,परिवर्तनशील है,इस जीवन में निरंतर सुख— दुख ,हानि लाभ ,मान और अपमान की नई नई चुनौतियां आती रहती है । इन चुनौतियों के समय जब हम आगे का निर्णय नहीं ले पाते तब इस भय का जन्म और खुशियां खत्म हो जाती हैं।
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जानना जरूरी है | Mantra to eliminate panic and fear
भय का मूल कारण यही होता है कि हम आगामी क्षण के लिए अपने मन में नकारात्मक विचारों का स्वयं ही निर्माण कर बैठते हैं और उस पर व्यर्थ चिंतन अपने मन में करने लगते हैं।इसका मूल कारण अपने मन से भविष्य की किसी मनगढ़ंत घटना को सोचना और उसके होने के बाद के परिणाम को मन से ही सत्य मान कर डरना जिसका सत्य से या यथार्थ से कोई संबंध नहीं होता।
यह तो है कि इस दुनिया में है डर नाम की कोई चीज है इसलिए इसे जानना भी जरूरी हो जाता है क्योंकि इसी की वजह से कई बार हमें लोग जीवन में अनुशासन का पालन करते हुए दिखते हैं।
इस डर को जीतने वाला इंसान ही जिंदगी में कुछ कर पाता है। वही इंसान अपने सपनों को जीत पाता है, अपने पसंद की जिंदगी जी पाता है,क्योंकि जो इसे जानते नहीं उनको यह डर बार-बार रोकता है।
डर एक तरह की अंदर से आवाज है जो हमें, बार-बार रोकती है,जो हमें अपनी मंजिल पर पहुंचने नहीं देती। इसलिए हम डर को जाने और उसे अपने किस्मत के फैसले करने से रोकने का प्रयास करें।
डर की वजह से हम अपनी जिंदगी को जी नहीं पाते सिर्फ काट रहे होते हैं। हमें इसी डर की वजह से आलस्य और रोग घेर लेता है और जिसकी वजह से छिपना शुरू कर देते हैं,टालना शुरू कर देते हैं।
इस डर को जितना भी जरूरी है क्योंकि जो डर को जीत लेता है उसे कोई हरा नहीं सकता। इसलिए हमें इस डर की तरफ ध्यान न देकर अपने मंजिल की तरफ ही ध्यान देना ही हमें सफलता दिलाता है।
डर एक दीवार की तरह होता है जो बचपन से ही हमारे हृदय में हमारे ही परिवार के लोगों द्वारा डाल दिया जाता है। और इसी डर के पीछे हम खुद को छुपा कर कंफर्ट जोन में बैठे रहते हैं।
जिंदगी में कुछ भी प्राप्त करने के लिए हमें इस डर को हराना होगा।इसके लिए हिम्मत से शुरुआत करना और अपनी जिद के द्वारा इसे हटाकर लक्ष्य तक पहुंचना होता है।
हिम्मत और साहस से शुरुआत कर जीने वाले इस डर से मुकाबला करते हैं और इस डर की दीवार को तोड़ने के लिए जिद करते हैं,डटे रहते हैं और वे अपने लक्ष्य तक पहुंच पाते हैं। वह शेर बनकर जीने वाले लोग इस से मुकाबला करते हैं। बार-बार उस काम को करते हैं जिससे उन्हें डर लगता है और उसमे सफलता प्राप्त करते हैं।
इसके लिए वे पहले अपने आप पर काम करते हैं,जैसे अकेले रहकर निर्भय रहना, किसी से दूर रहकर भी एकांत में रह लेना आदि चीजों से वे शुरुआत करते हैं।
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याद रखें
इसका जन्म हमारे मन में होता है,जो मनोविकार रूप में हृदय की दुर्बलता के कारण जन्म लेता है जिसको हमारे विचार,हमारी अपनी कल्पनाएं ही जन्म देती है।क्योंकि इसे हम अपनी सोच के माध्यम से ही तैयार करते हैं। हमारे सीमित ज्ञानकी वजह से यह जन्म लेता है।
जिस चीज से हमे डर लगता है,उसकी हमें पूरी जानकारी नहीं होतीऔर उस कार्य का हमें पूर्ण ज्ञान न होने के कारण हम निर्णय नहीं ले पाते और इससे हम डर को जन्म दे देते हैं।
डर की संताने भी
डर की संतान होती है,असमंजस की स्थिति,भेदभाव, क्या करूं क्या ना करूं, निर्णय न ले पाना,आलस्य, ईर्ष्या, निंदा, रोग, लगातार दवाइयों के चुंगल में फँसना, अपने मन में व्यर्थ के फिजूल विचारों द्वारा बातें करना आदि। डर के प्रकार
डर हमारे जीवन में कई तरह के होते हैं जैसे गरीबी का डर, निंदा, बीमारी का डर,अपने जीवन साथी के छूटने का डर, बुढ़ापे का डर, मरने का डर ,आदि आदि
याद रखे
भय मनुष्य का प्रबल शत्रु है। संसार के अधिकतर लोग इसके शिकार होते हैं लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि इस शत्रु की कोई शक्ल नहीं होती फिर भी इसके वश में होकर मनुष्य अपना आत्मविश्वास ,गौरव, अपनी प्रतिष्ठा और ईश्वर की भी सभी शक्तियों को भुला बैठता है और यहाँ तक अपनी हंसी खुशी को खो बैठता है।
इस दौरान मनुष्य अपने मन में तरह-तरह की काल्पनिक स्थिति का निर्माण कर लेता है और भयभीत रहता है, जो हुई ही नहीं।
उसमें अस्वीकार किए जाने का डर देखा जाता है जो उसकी इच्छा और महत्वाकांक्षा की हत्या कर देता है ,जो उसकी कार्य क्षमता खत्म कर देता है।
आमतौर पर लोग आने वाला कल कैसा होगा,इसकी वजह से चिंताग्रस्त देखे जाते हैं जबकि आने वाला कल मनुष्य न देख सकता है ना ही सुनिश्चित कर सकता है।
ईश्वर ने हम मानव की रचना की है,हमें हर परिस्थिति को झेलने की शक्ति दी है और हमें निर्भय होकर जीने के लिए इस संसार में भेजा है।
अभय के जीवन को प्राप्त करने के लिए हमें यह सीखना अति आवश्यक है की कैसे डर को जानना और इसके मूल कारण को पहचानना फिर उसके समाधान पर काम करना।
क्या होता है जब इसका प्रभाव बढ़ता है
हमें डर पर काबू पाना अति आवश्यक होता है,नहीं तो यह हमारा स्वामी बन जाता है और यदि एक बार इसे दबा दिया गया तो हम इसके मालिक होते हैं,और हमारे जीवन पर इसकी पकड़ ढीली होती जाती है।
भय का सामना करने से यह दुर्बल हो जाता है,और अगर इसे स्थान दिया या हृदय में बैठाया तो तनाव और उत्तेजना के रूप में यह बलशाली बन जाता है,इसलिए हमें भय का सामना करने की आदत डालनी चाहिए और इसका डट कर सामना करना चाहिए।
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इस डर से निपटने के लिए क्या क्या करें
डर से बचने का सबसे अच्छा उपाय है कि आप स्वयं उसे डराए,उस से दो-दो हाथ करें ,उसका सामना करें ,और जब आप उसे डराएंगे, उसका सामना करेंगे तो वह आपसे दूर भागने लगेगा। उसके बाद आप कोई भी काम पूरे जोश और खुशी के साथ कर सकते हैं।
भय से निपटने के लिए मन मस्तिष्क और शरीर को एक दिशा में कार्य करने की शक्ति और ऊर्जा प्रदान करने के लिए व्यायाम पर विशेष ध्यान देना चाहिए। कसरत करने से हमारे मस्तिष्क का रक्त शरीर के निचले भागों में प्रवाहित होने लगता है जो हमारे मस्तिष्क को शांति देता है।
निर्भय रहने के लिए अगर हम थोड़ा मेडिटेशन या ध्यान की स्थिति में जा सके तो यह बहुत ही कारगर होता है। इस ध्यान की स्थिति में पहुंचने के लिए प्रथम हमें अपने सांसो की गति को प्राणायाम के द्वारा नियंत्रित करने का प्रयास करना चाहिए। सांसो को सही ढंग से लेने और छोड़ने का तरीका सीखना चाहिए ।दिन भर के इस भागमभाग भरे जीवन में दिन भर में तीन चार बार लंबी सांसों को फेफड़ों में भरकर छोड़ना, हमारे अनावश्यक विचारों पर लगाम लगाने में बहुत ही लाभप्रद होता है, हम अपने मन को शून्य की स्थिति में ले जा पाते हैं।
भय से निपटने के लिए हम अपने कार्य से अपने मन को किसी अन्य कार्य में लगा कर उस स्थान से अपना ध्यान हटा कर भी हम निर्भय हो सकते हैं। जैसे संगीत सुनना ,कोई मूवी देखना, कहीं टहलने चला जाना ,किसी किताब को पढ़ने लग जाना आदि।
जो डराते हैं हमें, वो खुद भी डरे होते हैं
इस भय की स्थिति से निपटने के लिए हमें समाधान पर विचार करना चाहिए।
अपने किसी गुरु या मित्र से सलाह करना चाहिए फिर उसे जीवन में अमल करना चाहिये। अर्जुन ने भय की स्थिति में अपने मित्र कृष्ण से सलाह की और इससे उबरे और अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़े ।हमें यह भी सीखना है, हमारे मित्र और गुरु तो हमें सिर्फ सलाह दे सकते हैं हमें अपनी लड़ाई तो स्वयं ही लड़नी पड़ती है और अपने सारे निर्णय स्वयं लेने पड़ते हैं और उस पर स्वयं चलना पड़ता है तभी हम इस स्थिति से निकल पाते हैं।
इस स्थिति से निकलने के लिए हमें बार-बार अपने मुख से सकारात्मक विचारों को बोलना चाहिए की मैं निर्भय हूं, पूर्ण रूप से निर्भय हूं ,परमपिता परमात्मा की महान और उत्तम कृति हूं, मैं शक्तिशाली हूं, मैं सफल हूं, आगे समाधान है,आगे खुशियां ही खुशियां हैं।
निर्भय रहने के लिए हमें पूर्ण रूप से अपनी श्रद्धा और विश्वास को बनाए रखना अति आवश्यक है। इसके लिए हमें अपने विवेक को सदैव जागृत रखना और इसकी जागृति के लिए निरंतर अच्छे लोगों के संग रहना बुद्धिमान लोगों के संग रहना अति आवश्य है।
हम जैसी आशा करते हैं वैसे ही हमारी भावना का जन्म होता है और हमारी इच्छा शक्ति का निर्माण होता है,वास्तव में आशा ही इन सब की जननी है यह आशा हमारी सफल मानसिक शक्तियों को इकट्ठा करने का काम करती है,और हमें फिर से प्रसन्नता देती है।
निर्भयता के लिए हमें अपने हृदय में कानों के माध्यम से निरंतर उन सब ज्ञान के विचारों को धारण कर हृदय में प्रकाश और विवेक को जागृति करने की आदत बनानी होगी, तभी हम प्रसन्न रह सकेंगे।
हमें यह जानना और सीखना भी अति आवश्यक है इस संसार की सत्ता कोई अदृश्य शक्तियां द्वारा संचालित की जाती है और उसके द्वारा जिस किसी परिस्थिति का निर्माण होता है वह हम सबके लिए कल्याण के लिए होता है और इसे हमें स्वीकार करना आवश्यक है।
हमें अपने मन में सदैव सकारात्मक विचार बनाए रखने चाहिए और हम किसी भी तरह के संशय को अपने मन में न आने दें। यदि कभी मन में संशय आए तो भी हम उसे किसी उचित सलाहकार से सलाह के माध्यम से उसे तुरंत दूर करें ,उस पर काम करे,उसके समाधान पर काम करें और तुरंत अपनी प्रसन्नता को प्राप्त करें।
निर्भय रहने के लिए हमें नित्य निरंतर सत्संग से जुड़े रहना चाहिए अच्छे लोगों से जुड़े रहना चाहिए जिससे हमें यह पता रहता है,यह संसार क्या है, कैसे और किन शक्तियां द्वारा इसे संचालित किया जाता है।किस तरह से यह ब्रह्मांड संचालक प्रत्येक स्थिति का निर्माण अपने संचालन और सभी के कल्याण के लिए ही करता है।
यह बातें सिर्फ हमें सत्संग के माध्यम से ही सुनने और सीखने के लिए मिलती है। सत्संग में हमें स्वस्थ और ,सकारात्मक विचार सुनने को मिलती हैं ,जो हमारे मन को स्वस्थ रखती हैं,और वे हमारी मानसिक स्थिति को अनुकूलता प्रदान करते हैं। जिससे हमारा मन स्वस्थ रहता है ,तभी हम स्वस्थ रहते है और प्रसन्नता का अनुभव करते हैं।
निरंतर ब्रह्मांड की इन शक्ति से जुडने से प्रसाद के रूप में हमें जीवन में प्रथम लाभ निर्भयता का ही मिलता है ,जिसकी वजह से ही हम निर्भय रह पाते हैं जीवन में आनंदित और खुश रह पाते हैं।
निर्भय होने के लिए हमें परिवर्तन को स्वीकार कर, नए-नए परिवर्तन करने के लिए नए निर्णय के ऊपर काम कर,उसे अवसर समझ कर,उस पर क्रियात्मक रूप से तुरंत कार्य करके अंजाम पर पहुंचना चाहिए ।
कई बार निर्भय होने के लिए हमें ,अपनी स्थिति से ऊपर आने के लिए ,कुछ परिवर्तन करने पड़ते हैं जिसे हम उस वजह से टालमटोल करते रहते हैं कि हम सफल होंगे या असफल होंगे और उसकी वजह से हम जीवन में भय से ग्रसित हो जाते हैं ,अपनी खुशियों को दांव पर लगा बैठते हैं। आगे के जीवन की सफलता के बारे में निर्णय नहीं ले पाते जबकि कड़े निर्णय लेकर परिवर्तन की इस स्थिति में समाधान पर, तथा आगे के जीवन पर काम करना चाहिए।
निर्भय होने के लिए हमें अपने डर के विचारों को स्थिति को ,कलम के माध्यम से कागज पर उतार कर उस से होने वाले लाभ और हानि पर अपने विचारों को लिखना चाहिए और उनके समाधान को भी लिखकर चिंतन करना चाहिए। जिससे हम अपने निर्णय ले पाते हैं और पुनः अपने जीवन को निर्माण कर पाते हैं, अपनी खोई हुई खुशियों को प्राप्त कर पाते हैं।
निर्भय रहने वाले मनुष्य का पाचन तंत्र मजबूत होता है और उसके रक्त का संचार भी उसके शरीर में सुचारू रूप से चलता है जो उसे आनंद देता है।
निर्भयता के लिए हमें अपनी शक्तियों को पहचानना, जीवन जीने के अद्भुत सूत्रों को सीखना होगा तभी हम जीवन में प्रसन्न रह सकते हैं और इसके लिए हमें अपने हृदय की तुच्छ दुर्बलता को त्याग कर अपने कर्म क्षेत्र में डटे रहना होगा।निर्मित सभी स्थितियों का स्वागत करना उसके सम्मुख होना और आगे बढ़ते रहना ही हमें निर्भयता और खुशियां फिर से दिलाता है।
किसी भी बड़ी सफलता को प्राप्त करने के लिए हमें अपने जीवन में निर्भय होना भय से ऊपर उठना अति आवश्यक है। जो इंसान इस भय से ऊपर उठ पाता है वही जीवन में बड़ी सफलता प्राप्त कर पाता है। हमें यह देखना चाहिए की इस स्थिति में लिए गए इस निर्णय से सबसे बुरा क्या हो सकता है और मैं उसके साथ, उस स्थिति के साथ ,जीवन गुजारने को तैयार हूं या नही फिर वह इंसान अपने जीवन को हंसी खुशी से भरा, सुख समृद्धि से भरा बना पाता है।
सफलता के लिए अभय होना निर्भय होना अति आवश्यक है यदि स्वभाव में कहीं भी कायरता दिखाई दे,कमजोरी दिखाई दे ,तो हमें अपने उत्साह को सशक्त बनाने पर काम करना चाहिए। ऐसे में कभी घबराना नहीं चाहिए। ऐसे समय में स्वस्थ विचारों से मन को भर कर ब्रह्मांड नायक की ओर उसकी शक्तियों की ओर अपनी दृष्टि और मनोवृति की और केंद्रित कर हमें उत्साह और आनंद के जरिए अपने को शक्ति और ऊर्जा से भरना चाहिए।
निर्भयता के लिए जीवन में हमेशा इस बात को भी सीखना है की मंजिल हमारे सदैव सामने होती है पीछे नहीं होती पीछे तो हमारा इतिहास होता है।
हमेशा याद रखें कि डर के आगे ही जीत होती है डर से दो-दो हाथ करते ही हम अपने लक्ष्य के पास खड़े नजर आते हैं और इसे टालमटोल करना हमें एक चुनौती से ग्रसित कर देता हैइसलिए जीवन की सफलता और हंसी खुशी के लिए इस डर पर पांव रखकर आगे बढ़ना चाहिए और खूब प्रसन्न रहना चाहिये।
इसके
आगे
कोई
आपका
इंतजार कर रहा है
जय श्री कृष्ण
थैंक् यू
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