कैसे हम गहराई से ध्यान लगाए। How do we meditate deeply
ध्यान करने का मतलब है, खुद का ध्यान रखना, अपनी सोच , अपने, शब्द, अपने विचार, अपने कर्म का ध्यान रखना ।ध्यान कोई नियमित समय के लिए नही होता।यह जनम से जीवन के अंतिम क्षण तक जीवन जीने का विज्ञान है। ध्यान का मतलब अपने मन का ध्यान रखना है। मन का ध्यान ही मेडिट्रेन या ध्यान कहलाता है।मन की एकाग्रता को किसी एक कार्य पर ले जाना ही ध्यान कहलाता है।
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आत्मा ही इस शरीर का बीज और ध्यान इसी आत्मा का भोजन
हम अपने शरीर का ध्यान रखते हैं ,अपने काम का ध्यान रखते हैं ,किंतु जो आत्मा इस शरीर में विद्यमान है, जिस आत्मा का मन के माध्यम से पोषण होता है, जो आत्मा रूपी बीज इस शरीर में निवास करता है उसका हम ध्यान नही रखते। मन के विचारों से ही आत्मा को भोजन मिलता है। हमें अपनी इस आत्मा का ध्यान रखना ,उसे क्या चाहिए, उसकी क्या जरूरत है ,उसे किस बातों से पुष्टि मिलती है, उस पर काम करना ,उसको अपने जीवन का लक्ष्य बनाना ही ध्यान है।
अच्छी ज्ञान की बातें इस आत्मा का भोजन होती है ,जो हम सबको सच्चे गुरु या मित्र के माध्यम से मिलती है ।हमें जीवन में नित्य 1 घंटे इस ज्ञान को जरूर सुनना चाहिए । ध्यान के दौरान हम इस सुने हुए ज्ञान की ही बातों का चिंतन करते हैं, और उसी के अनुसार अपने जीवन में आचरण और अपने जीवन का निर्माण करते हैं। इन सब के सम्मिश्रण से ही ध्यान होता है।
अचानक सब कुछ करते हुए सब कार्यों रोक कर बैठ जाना, और फिर उसका आत्म चिंतन करना ही ध्यान कहलाता है। हम बाहर की किसी भी आवाज़ को रोक नही सकते, किंतु मौन होकर सब कुछ मस्तिष्क के धरातल पर देखना और उस पर मनन करना ही ध्यान कहलाता है।
ध्यान में प्रवेश के लिए क्या क्या करें
चौबीसों घंटे चलने वाली सांसो का आना और जाना, इन साँस के महत्व को जानना, इसको अनुभव करना,इस आती और जाती हुई सांसों को देखना ही ध्यान कहलाता है। हमारे शरीर में अदृश्य शक्तियों जो विद्यमान रहती हैं ,उन्हें जगाने की क्रिया, जिनसे मन की एकाग्रता बढ़ती है, उसे ही हम ध्यान कहते हैं।
सांसौं के द्वारा शुद्ध वायु तत्व को शरीर के अंदर रक्त में प्रवेश कराना ,और अंदर के कार्बन डाइऑक्साइड को सांसों के द्वारा ही बाहर निकाल कर मन को शुद्ध करना ही ध्यान में प्रवेश की शुरुआत है।
इस किया से जैसे-जैसे आंतरिक शुद्धि बढ़ती है, हम अपने आप ही उस अदृश्य शक्ति या परमात्मा से जुडते चले जाते हैं, यहां वहां की बातों से मन स्वतः हटकर उन शक्तियों से स्वयं जुड़ने लग जाता है ध्यान स्वयं ही होने लगता है।
सांसो पर ध्यान देना और कुछ कार्यों के दौरान अगर सांसो पर ध्यान केंद्रित न भी हो सके तो हमें उस काम को एकाग्रता से करना चाहिए। इससे धीरे-धीरे हमारे शरीर में एकाग्रता बढ़ती है ,और हम हमारे मन में आनंद और शांति को महसूस करते हैं।
इन सांसो की क्रिया पर हम जितना ध्यान देते हैं, उतनी ही हमारी नींद गहरी होती जाती है। हमारे सोने का समय धीरे-धीरे स्वयं ही कम होने लगता है। इस नींद के बाद स्वयं ही हम अपने आप को नई ऊर्जा शक्ति ,और ज्ञान से जुड़ा हुआ महसूस करते हैं।
इंद्रियों के उपवास से भी हमारे शरीर में एकाग्रता और शक्तियां बढ़ती है।
ध्यान की क्रिया को सफलतापूर्वक करने के लिए हमें अपने भोजन को भी कम से कम करना होता है । हमें यह ध्यान रखना होता है की,हम कम से कम भोजन करें, तभी हम इस क्रिया को सफलतापूर्वक अंजाम दे सकते हैं। भोजन करना,मानव शरीर की सबसे गहन आदत होती है जो जन्म से लेकर अंतिम सांस तक चलती है, अतः इस आदत को बदलना ध्यान क्रिया में प्रवेश करने में अहम कदम होता है।
कम से कम बोलना और अधिक से अधिक मौन रहना इस ध्यान को करने के लिए अति आवश्यक है।कम बोलने से हमारे शरीर में ऊर्जा का संचार होता है, ऊर्जा शक्ति जमा होती है, जिससे हमें आगे अदृश्य शक्तियों से जुड़ने में सहयोग मिलता है। यही ऊर्जा शक्ति आत्मा का भोजन होती है।
आंख पर नियंत्रण भी इस ध्यान क्रिया में पहुंचने के लिए अति आवश्यक है। हम आंखों के द्वारा बाहर के वातावरण को कम से कम देखें। हम अपनी कम देखने की इस आदत से हम बहुत से व्यर्थ के चिंतन और विचारों पर लगाम लगाना शुरू कर पाते हैं। जिससे हम मानसिक तनाव से धीरे-धीरे मुक्त होते जाते हैं ।हमारी आंखों में भी शीतलता महसूस होती है। हम आनंद रस की अनुभूति कर ध्यान में आगे बढ़ पाते हैं।
ध्यान के लिए मन को संभालना
ध्यान करने के लिए योग, प्राणायाम और व्यायाम के द्वारा इंद्रियों को वश में कर मन को वश में करना और उसे ब्रह्मांड के साथ जोड़ना होता है। अपने मन और शरीर को पवित्र कर ही आत्मा को परमात्मा से जोड़ पाते हैं। हमारा मन सिर्फ एक समय में एक ही काम कर सकता है ,और उसे पूरी ऊर्जा शक्ति के साथ एक काम को करने के लिए केंद्रित कर , अपने मन को तैयार करने की स्थिति ही ध्यान की स्थिति है। मन को विचार से शून्य करने और खाली करने की स्थिति, हमे ध्यान मे ले जाती है। मन जहाँ टिकता है, वही यह अपनी सारी शक्ति लगा देता है। ध्यान की क्रिया में पहुंचने के लिए अपने मन को प्रथम तो वर्तमान की स्थिति में टिकाना भी सीखना अति आवश्यक है।
ध्यान एक मौन और उसके पहले का संगीत ( हमारे मंत्र)
ध्यान मे मन को लगाने के लिए मंत्र या उन अदृश्य शक्तियों के नाम का सहारा भी लेना होता है। ओम का उच्चारण , गायत्री का जप,या उन शक्तियों के नाम जैसे राम, कृष्ण या शिव तत्व का नाम संकीर्तंन भी ध्यान के लिए काफी उपयोगी होता है।
कुल मिलाकर ध्यान का मतलब अपना ध्यान रखना है, अपने आप से बातें करना, अपने आप से रिश्ता बनाना होता है। हम दुनिया में सब से बातें करते हैं, किंतु अपने आप से बातें करना ही ध्यान कहलाता है।ध्यान में खुद को पवित्र करना होता है।
अपने मन में कई उलझनोंकी दीवारें, अज्ञानता की दीवारें, जो अज्ञानवश हम बना लेते हैं ,उसे हम ध्यान में बैठकर उसका चिंतन मनन कर अपने मन को समझाते हैं ।अपने दिल की धड़कनों से उन बातों के करके, अपने दिल की बात को सुनना उसके जवाब को सुनना, ध्यान कहलाता है।
कब करें ध्यान।
ध्यान प्रातः काल ब्रह्ममुहूरत में करें तो सबसे उतम समय होता है। इस समय वायु में अमृत के कण होते हैं। इस समय सारी सकरात्मक शक्ति ब्रह्मांड में जागृत रहती है। इस समय के सात्विक वातावरण में ध्यान का लगना अति सरल हो जाता है।
कितनी देर ध्यान करें।
हमारी जितनी उम्र है, ध्यान हम उतनी देर जरूर करें। ये अगर हम 5 साल की उम्र से करें तो अति उत्तम है। जब तक जियें , तब तक ध्यान निरंतर करें। दिन भर में हम जितनी बार भोजन करें, उतनी बार अगर ध्यान कर सके, तो यह अति उत्तम है अन्यथा दिन भर में एक या दो बार तो निश्चित रूप से हमें इस ध्यान शक्ति से जूड़ना चाहिए।
ध्यान से क्या मिलता है
ध्यान से हम असंभव सी वस्तु भी प्राप्त कर सकते हैं। ध्यान हमारे अंदर की नकारात्मक भावना या आदत को खत्म कर देता है। किसी चीज को प्राप्त करने के अनावश्यक इच्छा का नाश भी ध्यान के द्वारा संभव हो जाता है।
किन शक्तियों का विकास
ध्यान हमें हर परिस्थिति में समता में रहना सिखाता है। यूं कहें तो चाहे परिस्थिति कैसी भी हो, उसमें समाधान को निकालने का प्रोसेस भी हम ध्यान करने की आदत से ही कर पाते हैं। इस ध्यान की क्रिया से हमारे में निर्णय लेने की क्षमता का विकास होता है।हम जीवन में एक्सेपटेंस को सिखते हैं, जो हमें यह सिखाता है, जो जैसा है, उसे वैसा ही स्वीकार करना। ध्यान हमें मानव बनना सिखाता है, ध्यान से मानव बनने के गुणों का विकास होता है।
ध्यान का आनंद, मन की शुद्धि
ध्यान में हम अपना मूड ,अपना मन ,अपने विचारों से ठीक करते हैं,उसे ऊर्जावान बनाते हैं ,और खुश रहते हैं। ध्यान एक अद्भुत क्रिया है ,जो हमारे मन मस्तिष्क को बैलेंस करती है ,हमें शांति प्रदान करती है। जिस तरह हम दूसरे मनुष्य को ज्ञान के द्वारा समझाते हैं, उससे बातें करते हैं ,उसे मनाते हैं, उसी तरह हम ध्यान के दौरान अपने मन को बातें करके समझाते हैं, फिर से उसे सकारात्मक मूड में लाते हैं।
ध्यान से मन को कैसे संभालें
असल में यह ध्यान अपने मन की उलझनों को सुलझाने का एक तरीका है। इस क्रिया के दौरान हम अपने मन, मस्तिष्क को उन अदृश्य शक्तियों से जोड़ते हैं ,जो इस ब्रह्मांड का संचालन करती है। उन शक्तियों से बातें करके अपने मन को ऊर्जावान बनाते हैं, समाधान उन्हीं से पूछते हैं, और दिल की धड़कनों में जो प्रेरणा आती है उसे ही समाधान मान आगे बढ़ते हैं।
ध्यान हमारे जीवन में अति महत्वपूर्ण है इसलिए इसका तो स्थान हमारी शिक्षा, व्यवस्था मे होना अति आवश्यक है, क्यों की 5 वर्ष की उम्र से हमे हर काम ध्यान से करने को कहा जाता है किंतु ध्यान क्या है, कैसे करना है यह हमें सिखाया नही जाता।
ध्यान को हमें १ दिन करना है ,ध्यान से, उसके बाद ध्यान, हमारा ध्यान स्वयं ही सारी जिंदगी रख लेता है।
ध्यान परमात्मा की प्रतिक्षा
जिन शक्तियों से ब्रह्मांड का संचालन होता है ,जिन शक्तियों से सूर्य प्रकाश करता है ,जिन शक्तियों से हवाएं बहती है, जिन शक्तियों से इस सृष्टि पर जल का प्रवाह होता है,जिनशक्ति से यह आकाश तत्व विद्यमान है, जिन से यह अग्नि तत्व प्रकट होता है , जो शक्ति इस भूमि पर हम सबको धारण किए हुए है और इन सभी शक्तियों का भी संचालन, जिनकी देखरेख में होता है उस शक्ति से कांटेक्ट करना और मिलना इस ध्यान में किया जाता है। यह मिलन हमें खुशियों से भर देता है।
जय श्री कृष्ण