जन्माष्टमी – Krishna Janmashtami 2022 कैसे मनाएं |और पाएँ खुशियां ही खुशियाँ|

आकर्षण मतलब कृष्ण और कृष्ण मतलब आकर्षण। कृष्ण एक ऐसी परफेक्ट पर्सनैलिटी ,ऐसे व्यक्तित्व जो धर्म के संस्थापक,सर्वोपरि ,गंभीर होकर भी , जो हंसता है ,नाचता है ,गाता है ,खुशियां बिखेरता है। ,खुद भी हंसता ,नाचता और गाता है, और उनके साथ रहने वाले भी उसके साथ हंसते ,नाचते, गाते हैं ,खुश रहते हैं।

ऐसे व्यक्तित्व का नाम कृष्ण, जो  सदैव मुस्कुराहट का आभूषण धारण किए रहते हैं।जो दूसरों के चेहरे पर भी हंसी, मुस्कुराहट ,आनंद, हर्ष उल्लास लाते हैं।

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बधाई हो , बधाई हो, बधाई हो

जन्माष्टमी – Krishna Janmashtami 2022 कैसे मनाएं |और पाएँ खुशियां ही खुशियाँ|

इनका सब उल्टा उल्टा है, द्रोपदी के चीर बढ़ाए और गोपियों के वस्त्र हरण किए किए, जनमें जेल में, और काम लोगों को मुक्त करने का करते हैं। इनके जैसा गृहस्थी , सन्यासी , पॉलीटिशियन और जगतगुरु, कोई नहीं हुआ। गायन, वादन, नृत्य कला में प्रवीण ,हमारे कृष्ण।

कुरुक्षेत्र में घोड़ों को लगे हुए बाण निकालते, कौशल दिखाते, रथ हांकते और स्वभाव से अति विनम्र और दया के सागर हैं, हमारे कृष्ण।इनके जैसा सारथी और रथी भी कोई नहीं। इनके जैसा पूर्णावतार भी कोई नहीं।

ऐसी पर्सनालिटी जिस पर संसार की किसी भी परिस्थिति का कभी कोई प्रभाव नहीं पड़ा। जेल में पैदा होने , पूतना के विषपान कराने से, मामा कंस के जुल्म से ,मामा कंस के मारे जाने से, भिक्षा मांगते हुए, ऋषियों के आश्रम में निवास करने से ,धरती पर सोने से, लोगों और स्वयं अपने भाई के भी अविश्वास करने से, बच्चों के उदंड होने से,किसी भी कारण से श्री कृष्ण के चेहरे पर कभी शिकन नहीं पड़ी, वे कभी उदास और निराश नहीं हुए। सदैव समान रूप से हंसते और मुस्कुराते रहे, किसी भी वस्तु की प्राप्ति या अप्राप्ति ,किसी की भी निंदा स्तुति, से श्री कृष्ण की मुख प्रभा की कभी विस्मृति नहीं हुई, वे हर परिस्थिति में हँसते और मुस्कुराते रहे।फल की परवाह न कर सिर्फ अपने कार्य को करते रहे।

कृष्ण प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में उठते ,और कुछ देर ध्यान करते। वे अपने हाथों से गौ की सेवा करते। ध्यान करते वक्त पशु पक्षियों ,की ध्वनि को ध्यान की अवस्था में सुनते,गायत्री का ध्यान करते, उस समय उनका रोम-रोम प्रसन्नता से खिल जाता।इसके बाद वे निर्मल जल से स्नान कर, धोती और कुर्ता पहन कर हवन करते ।

गायत्री का जप कर सूर्य की उपासना करते, और बड़ों की सेवा करते,गो का दान करते , ब्राह्मणों को वस्त्र और धन का दान करते, इसके बाद अपने कर्म क्षेत्र में जाते समय अपने कुल के बड़े, बूढ़े ,गुरुजन ,और समस्त प्राणियों को प्रणाम कर मांगलिक वस्तुओं का स्पर्श करते। अपने आप को चंदन आदि से सजाते और राज कार्य को जाते समय दर्पण में अपना मुख देखते। गाय बैल और प्रतिमाओं का दर्शन करते हुए हाथ जोड़ अपने वाहन, रथ के द्वारा सभा में पहुंचते। मुस्कुराहट को अपने चेहरे पर बनाकर रखते।

इसके बाद वे सभा में अपने सिंहासन पर बैठ कर हंसी मजाक करते हुए सभा का आयोजन करते । इस दौरान संगीत का भी आनंद लेते और अपनी सभा में बैठकर पुरोहितों से वेद मंत्रों के व्याख्यान सुनते, और अपने राज कार्य को करते।

गौ पूजन करते अपने परिवार के साथ

कृष्ण उत्सव को अपने परिवार के साथ मनाने में विश्वास रखते ,उन्हें ऐसा लगता अपने परिवार के साथ उत्सव मनाकर जो खुशी और आनंद लिया जा सकता है, और वह बाहर कहीं नहीं मिल सकता । 

उन्होंने प्रकृति यानी गोबर्धंन पूजा शुरू करवाई

उन्होंने इंद्र पूजा की जगह गोवर्धन की पूजा शुरू करवाई ,प्रकृति पूजा करने का आदेश दिया।

गौ पूजन का महत्व बताया, और कर्म को ही प्रधान बताया।

कृष्ण ने गोवर्धन को धारण किया। 7 साल के कन्हैया, 7 कोस के गिरिराज, 7 दिन के लिए उठाया,और यह बताया सप्ताह के सातों दिन ,24 घंटे इस देह में मैं आत्मा रूप में निवास करता हूं, धारण कीये रहता हूं। गोवर्धन को 56 भोग लगवाया और यह संदेश दिया इस देह का सदुपयोग 56 तरीके से करें । बड़े भाग्य से मिला यह अनमोल मानव शरीर अनमोल है।

उन्होंने प्रकृति की पूजा को महत्व दिया, और जीवन की प्रसन्नता के लिए परिवार इस्ट मित्रों के साथ मिलकर ,गोवर्धन, की पूजा को करने का आदेश दिया। कृष्ण ने बताया की प्रकृति हमारा पोषण करती है, इसलिए हम प्रकृति की ही पूजा करें उन्हें ही भगवान माने। वे उत्सव को मना कर खुश होते समाज को खुशियां देते। उन्होंने संदेश दिया जो प्रकृति हमारे कर्म का फल हमें देती है, हमारे लिए उपयोगी वस्तु हमें फल स्वरूप देकर हमारा पोषण करती है,उनकी ही पूजा करना हर मानव का कर्तव्य है।

अपनी शौक को विकसित कर आनंद लेना बताया

कृष्ण हाथ में  बांसुरी लिए संगीत बजाते हैं। वे हमें सिखाते  हैं कि हम अपनी शौक को विकसित करें ,और उसमें आनंद महसूस करें।लोगों को भी अपनी शौक के द्वारा अपनी और आकर्षित करें।उस आकर्षण में खुशियां ही खुशियां है और जीवन का वास्तविक आनंद है।

चुनौतियों को अवसर मानना

कृष्ण चुनौतियों को जीवन का अवसर मानते हैं,आनंदित होते हैं और यह मानते हैं ,की चुनौतियां हमारे जीवन को, सुंदर करने और निखारने आई हैं। हमको उसमें, नए परिवर्तन स्वीकार कर,अवसर मान, नई नई खुशियों के नये अवसर ढूँढने चाहिए। हर स्थिति में अपना रास्ता स्वयं बनाना है, उस पर पाँव रख कर आगे बढ़ना है।

हर हाल में आगे बढ़ना है

अपने परिवार की सब जिम्मेदारियों और अपने कर्तव्य को निभाते हुए ,हंसते मुस्कुराते हुए कृष्ण ने हमें सिखाया,कुछ उसूलों को बदलकर अपने जीवन की हर चुनौतियों को खुशनुमा बना कर जिया जा सकता है।शांत और प्रसन्नता के साथ अपने परिवार के साथ  रहा जा सकता है।

कृष्ण शांत रहकर अपने आभामंडल का प्रभाव दूसरों पर छोड़ते। उन्होंने यह भी हमें सिखाया कि जितना हम शांत रह सकें हमारी चुनौतियां हमें उतना ही मजबूत बना देती है।   

गीता के ज्ञान द्वारा अपना अनुभव हमें दिया।

कर्म योगी बनना सिखाया

कर्म योगी बनने का संदेश दिया वे कभी हारते नहीं, वे परिणाम की चिंता भी नहीं करते, वे सिर्फ कर्म करने में ही विश्वास रखते,उनका मानना है कर्म करने वाला एक न एक दिन जीत ही जाता है। वह जीतता है, या सीखता है,हारता कभी नहीं।

उन्होंने सोच बदलने का आदेश दिया

कृष्ण ने कभी किसी से आशा नहीं रखी। सदैव हर परिस्थिति में वे सिर्फ मुस्कुराते ,और उनकी इस आदत से वे जहां जाते खुशियां ही खुशियां बिखेरते।

कृष्ण ने किसी के अभिमान को अपने सामने कभी ठहरने नहीं दिया और वे कभी किसी से डरे नहीं।उन्होंने सोच पर काम किया, उन्होंने बताया वर्तमान में ही हमारा जीवन है, इसका सदुपयोग करने से हमारा अतीत और भविष्य दोनों को यह वर्तमान स्वयं ही सुंदर बना देता है।

अपने संघर्ष को स्वयं ही करना पड़ता है।

वे सब परिस्थिति का डट कर मुकाबला करते और खुद भी खुश रहते और सबको खुशियां देते।कृष्ण से जुड़े व्यक्ति उनके सन्मुख जैसे ही रोते, भगवान की कृपा उनके समक्ष तुरंत प्रकट होती, क्योंकि कृष्ण किसी का रोना बर्दाश्त नहीं कर सकते।

जन्माष्टमी का मतलब

जन्माष्टमी का मतलब भगवान कृष्ण को हृदय में स्थान देना ,उनकी बातों को मानना,उनके उसूलों को आदर करना है। इस पर हमें ध्यान देना चाहिए तभी हमारे हृदय में मानवता का जन्म होता है।

मुझे तो लगता है शायद यह आत्मा का जन्म दिवस है। कृष्ण के स्वभाव और लीला को जानना ही जन्माष्टमी मनाना है। जीवन के सातों दिन इस तत्व को जानकर ही इनका प्राकट्य हृदय के धरातल पर किया जा सकता है।

भगवान हो तो कृष्ण जैसा

यूं तो हमारे हिंदू धर्म में बहुत से देवी और देवता हुए किंतु कृष्ण ही एक ऐसे देव हुए जिन्होंने खुद को भगवान बताया, और सिर्फ खुद को पूजने के लिए कहा। गीता के माध्यम से उन्होंने यह भी संदेश दिया तू सिर्फ एक मेरी शरण में आजा, तेरी सब तरह से सारी जिम्मेदारी मैं स्वयं वहन करूँगा, तेरी सब तरह से रक्षा का भार भी मैं उठाऊँगा, और तेरी सब अप्राप्त वस्तु तुझे प्राप्त कराने का दायित्व भी मैं स्वयं उठाऊँगा, और जो तेरे पास हैं उनकी रक्षा भी मैं स्वयं करूँगा।

कृष्ण के जीवन के दौरान यह भी देखा गया वे जहां जहां पहुंचे वहां महालक्ष्मी ,समृद्धि, सफलता, और खुशियां, उनके साथ पहुंची। जहां वह पहुंचे वहां कोई बुराई टिक नहीं पाई। उन्होंने जिनको जिनको एक बार पकड़ लिया, सदैव फिर उसके हृदय में किसी न किसी रूप में अपना पक्का घर बनाया। उसको इस संसार सागर से पार लगा कर ही उसका साथ छोड़ा।

कृष्ण ने विभिन्न लीला कर हमे शिक्षा दी

कृष्ण की विभिन्न बाल लीला

उनकी बताई गई गीता का आदर उनका मानव जीवन के प्रति कर्तव्य है ,उनका आदेश है, जिसे हमें अपने जीवन में उतार कर खुशियां मिलती है। हम सब का कर्तव्य है जन्माष्टमी को हम उनके आदेश का दिन माने उनके बारे में लोगों को भी बताएं और जीवन को प्रसन्न चित्त होकर व्यतीत करें।

शस्त्र को हथियार बनाने का आदेश दिया

कृष्ण के ईस्ट

उन्होंने जीवन में भगवान शंकर को अपना इष्ट माना। शिवरात्रि को महत्व दिया ,शिवरात्रि के दिन देवाधिदेव भगवान शिव से प्रार्थना की, कि वे उन पर प्रसन्न हो ।इस गुप्त रहस्य को भी हमें समझना है, और शिव पूजन को भी जीवन में स्थान देना है।

कृष्ण ने सदैव अपने शुभ कार्य के समय गाय को आगे रखा। 7 वर्ष की उम्र से ही उन्होंने गाय की सेवा की और अपना काम करना शुरू किया।वे गौ चराने जाते। जब भी उन्होंने अपने जीवन में कोई बड़ा कार्य किया, गायों को आगे रखा, महत्व दिया। उन्होंने अपने कार्य से प्रेम किया , और उसी में प्रसन्न रहते थे, यह भी हमें सीखना है। हम अपने काम से प्यार कर ही खुश रह सकते हैं।

वे गौ सेवा करते जो हमें यह सिखाता है की पृथ्वी पर गौ एक ऐसी शक्ति है जो हमसे लेती कुछ नहीं, सिर्फ हमें देती है। गौ को उन्होंने जीवन में  परिवार का सदस्य मान कर साथ रखने का संदेश दिया ,गौ को धन बताए । जीवन में सुख, समृद्धि, धन, के लिए गौ सेवा को निरंतर कर्तव्य मान कर करना बताया। हर सुख दुख में गौ को साथ रखने और सेवा करने का आदेश दिया। 

गौ द्रव्य धरती के अमृत|

छाछ को प्राप्त करने के लिए जिस तरह गोपियों के साथ नाचते वह यही दर्शाता है छाछ,दूध, और दही पृथ्वी का सर्वोत्तम अमृत है। इसका निरंतर सेवन करना, हर मानव के लिए बहुत ही गुणकारी है।

प्रातः कालीन भोजन के दौरान मधुर घी मिश्रित दही ,और भात को अदरक और नींबू के अचार के साथ सेवन करते , जो यह सिखाता है ,हम सात्विक भोजन करें। भोजन में उन्हें दूध से बनी हुई खीर तथा विभिन्न मिठाईयां भी बहुत पसंद आती थी।

प्रात उठकर जब अपने इष्ट मित्रों के साथ गो को चराने जाते उस समय में वृक्ष से तोड़ तोड़ कर मित्रों के साथ फलों का सेवन कर आनंद लेते।

अतिथि का महत्व बताया

कृष्ण ने आतिथ्य स्वीकारा भी और अपने यहां आए अतिथि का स्वागत कर अतिथि का महत्व बताया।परिवार और इस्ट मित्र के साथ भोजन करना और कराना बहुत प्रसन्नता देता है।निरंतर घर में अतिथि आते रहें, तो घर में आनंद तो उत्सव का माहौल बना रहता है। हमारे मन मस्तिष्क में खुशियां बनी रहती हैं।

किसी की विपत्ति के समय मदद  कर वे अपने को आनंद और उत्साह से भर कर खुश होते। उन्होंने जीवन में अनेक राक्षस का वध किया जो हमें यह सिखाता है जीवन में अन्याय का, बुरी आदतों का ,अपनी बुरी संगत का नाश, हमें खुद को करने पर काम करना चाहिए, यह हमें खुशियां देता है। यह आदतें ही हमारे जीवन को सफल, सुखमय,और खुशनुमा बनाती है।

जिनकी बुद्धि में कृष्ण रहे ,कृष्ण के बारे में जिन्होंने  सोचा, उनका ध्यान किया, भले ही दुष्ट भाव से हो जीवन में सद्गति को प्राप्त हुए ,मुक्त हुए,अपने पाप करने की  वृत्ति से मुक्त हुए और प्रसन्नता से पृथ्वी पर जीवन यापन किया।

वे सदा सज संवर कर रहते, उनका यह आचरण हमें प्रेरना देता है सुंदर और आकर्षक दिख कर हम अपने, आत्मविश्वास को बढ़ाते ही हैं,बल्कि अपने आस पास के माहौल को भी खुशहाल बनाते हैं, नई ऊर्जा देते हैं।

कृष्ण ने सजे घर में अपने पत्नी, परिवार, और बच्चों के साथ रहने को जीवन में प्रसन्नता से जीने का रहस्य बताया।

उन्होंने बताया साधु संतों की सेवा ,गायत्री का जप,हवन, दान,कथा श्रवण,कर हम गृहस्थ जीवन को खुशनुमा और आंनद के भरा बना सकते हैं।

कृष्ण सदैव ब्रह्ममुहुर्त में उठते ,उन्होंने हमें यह सिखाया की हमें प्रसन्न रहने के लिए सुबह के स्वर्णिम समय का सदुपयोग करना चाहिए ।सुबह की शरुआत अपने इस्ट देव की आराधना, ध्यान कर ,गौ सेवा कर अपने काम से लग कर,प्रसन्नता से रहा जा सकता है।

उन्होंने घर के बड़े बुजरगों की सेवा को भी जीवन निर्माण में स्थान दिया, उनकी आज्ञा का पालन कर  उनको प्रसन्नता देते और खुशियां बिखेरते। वे अपने से जुड़े सभी को प्रसन्न रखते ,उनकी जरूरतों को पूरा कर खुद भी प्रसन्नता का अनुभव करते।

कृष्ण ने मित्रों के साथ को कीमती बताया

सच्चा मित्र वही जो मित्र के दुख को बिना बोले ही समझ जाए

अपने मित्रों के साथ खेलने में वे भरपूर आनंद लेते। मित्रों के साथ धमाचौकड़ी करने में उन्हें बहुत मजा आता। उन्होंने मित्रता को बहुत महत्व दिया, उन्होंने यह भी दिखाया जो उनसे जुड़े हैं, उनकी रक्षा और चिंता, वे स्वयं ही करते हैं।उन्होंने यह भी बताया की किसी प्रकार भी मुझसे जुड़ जाओ,या कोई संबंध बना लो बाकी सब मैं देख लूंगा।   

उन्होंने मित्रता को बहुत ही महत्व दिया। वे मित्रों से सलाह करते।उनके साथ भोजन करना, घूमना,उनको आंनद देता ।वे संदेश यह देना चाहे की यह मित्रता का रिश्ता  अनमोल है ।यह  हमारे जीवन को खुशहाल और रसमय बनाने में विशेष महत्व रखता है।समय समय पर यज्ञों का आयोजन अपने परिवार ,इस्ट ,मित्र का साथ, भी जीवन में नयी ऊर्जा और खुशियां देता है। उन्होंने सलाह के लिए अपने भाई की सलाह से ऊपर अपने मित्र की सलाह को रखा और माना।

ज्ञान को जीवन विकास के लिए बहुत महत्व दिया|

कृष्ण ने हमें बताया धूल से जैसे दर्पण ढका रहता है ,उसी प्रकार ज्ञान हमारे अज्ञान के द्वारा ढका रहता है ।ज्ञान का जन्म नहीं होता बल्कि यह प्रकट होता है ,हमारे अंदर ज्ञान तो स्वत ही मौजूद है इसे प्रकट करने के लिए हमें ज्ञानी वक्ताओं के साथ बैठना पड़ता है , जुड़ना पड़ता है ,जो हमें फिर से उस ज्ञान को याद दिलाते हैं ,वो ही ज्ञान हमें खुशियां देता है।   

Forgive, forget and go for future

उन्होंने मंत्र दिया जीवन में क्षमा करो, जीवन में भूलो और आगे की ओर देखकर फिर से अपने काम में लगो, कहीं भी उन्होंने किसी भी परिस्थिति में, नहीं अटकने का ही, आगे के ओर न देखने का ही मंत्र दिया।

गौ रक्षक इनके खास

गौशाला इन का रेजिडेंशियल ऐड्रेस है, और गौशाला की सेवा करने वाले लोग कृष्ण के खास हैं,आत्मीय है,अपने हैं।

गीता के नायक का नया नाम

गीता के माध्यम से यदि हम कृष्ण को देखें कृष्ण का नाम हम सुलझन दे सकते हैं और अर्जुन का नाम यानी हमारा नाम हम उलझन दे सकते हैं।जीवन के सभी रहस्यों को कृष्ण ने अर्जुन के माध्यम से समझा कर इस ग्रंथ के माध्यम से हमें खुशियां बटोरने की, जीवन जीने की कला को सिखाया।

कृष्ण को हम शून्य या जीरो भी कह सकते हैं, क्योंकि यह जिस भी संख्या के साथ यह जुड़ जाते हैं उसकी कीमत बढ़ा देते हैं।कृष्ण ने धर्म को रिश्तो से भी ऊपर माना और हर जगह धर्म को ही प्रथम आगे रखा । धर्म को उन्होंने स्वआत्मा बताया और आत्मा के धर्म बताए। आत्मा का धर्म उन्होंने पवित्रता, शांति, प्रेम ,आदि बताए।

गृहस्थ जीवन सर्वोपरि

भगवान श्री कृष्ण ने अपना जीवन जी कर दिखाया और यह भी बताया कि धर्म ,अर्थ, और काम और मोक्ष की प्राप्ति के लिए घर ही एकमात्र ऐसा स्थान है ,जहां साधना कर सब प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने सदैव गृहस्थ धर्म को ही अपनाने पर बल दिया।

युद्ध की स्थिति मे भी विकास

कृष्ण एक ऐसा राजनेता ,जिसने महाभारत को टालने और रोकने का प्रयास कर भी हंसते हुए जब कोई राजी नहीं हुआ तो युद्ध स्वीकारा। उनको युद्ध और शांति दोनो परिस्थिति के समान होने का अनुभव था ।वे जानते हैं युद्ध ही आगे के लिए जरूरी है,वे जानते हैं, युद्ध की परस्थिति और चुनौती से ही हम जागरूक होंगे,विकसित होंगे। जीवन का विकास या सृजन युद्ध की परिस्थिति में ही होता है।

कृष्ण भक्त को अपना मित्र बनाएं और उससे सलाह करें,

कृष्ण से जुड़े व्यक्ति ही कृष्ण |उन्हें सलाहकार बनाएं

उन्होंने अपने जीवन में अपने मित्रों और सलाहकारों का महत्व भी बताया की सलाहकार के साथ नित्य बैठना भी हमें उत्साह से भरता है,हमारे कार्य को सुनियोजित करता है, जिससे हमारे कार्य क्षेत्र के लोगों में आत्मविश्वास बढ़ता है।

मेरा सौभाग्य कृष्ण मेरे मित्र जीत मेरी पक्की

आज भी कृष्ण अपनी संपूर्ण शक्तियों के साथ भागवत में

जब कृष्ण इस धरा धाम से लीला संपूर्ण कर जाने लगे तब उनके मित्र उद्धव जी ने चिंता प्रकट की, कि इस कलयुग में उनके बाद मनुष्य का उद्धार कैसे होगा, तब भगवान श्री कृष्ण ने अपनी संपूर्ण आहलादिनी शक्तियों के साथ भागवत में प्रवेश किया और यह घोषणा की जो इसकी शरण ग्रहण करेंगे, उसे सब जगह पर ,सब स्थिति में वे राह दिखाएंगे, उनका साथ देंगे, और दे रहे हैं।

जय श्री कृष्ण

मित्र को धन्यवाद है, की उन्होंने मुझे प्रेरणा दी कि मैं उनके बारे में कुछ लिख सकूं ।

धन्यवाद

Nirmal Tantia
मैं निर्मल टांटिया जन्म से ही मुझे कुछ न कुछ सीखते रहने का शौक रहा। रोज ही मुझे कुछ नया सीखने का अवसर मिलता रहा। एक दिन मुझे ऐसा विचार आया क्यों ना मैं इस ज्ञान को लोगों को बताऊं ,तब मैंने निश्चय किया इंटरनेट के जरिए, ब्लॉग के माध्यम से मैं लोगों को बताऊं किस तरह वे आधुनिक जीवन शैली में भी जीवन में खुश रह सकते हैं

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