भागवत गीता की सार बातें
श्रीमद भागवत गीता जीवन का एक सिद्धांत है यह ग्रंथ हमें जीवन जीने के स्वर्णिम सूत्र सिखाता है
गीता के हर श्लोक हम मानव मात्र के लिए है जो किसी भी धर्म से जुड़ा हो अगर वास्तविकता में कोई मानव जीवन में सफल जीवन जीना चाहे तो उसे गीता से निरंतर जुड़े रहना चाहिए
गीता को हम जितनी बार पढ़ते हैं उतनी बार नई-नई बातें निकल कर सामने आती है
हमारे सारे प्रश्नों के जवाब श्रीमदभगवत गीता के माध्यम से मिल सकते हैं
गीता पढ़ने और सुनने वाले व्यक्ति को भगवान से अभयदान और खुश रहने की कला प्रसाद स्वरूप मिलती है
गीता से जुड़ कर ही इंसान सफल नेतृत्व भी कर सकता है गीता एक राजनीतिज्ञ व्यक्ति को जरूर पढ़नी चाहिए
जो भी होता है अच्छे के लिए होता है
सिर्फ कर्म करें फल की इच्छा न करें
अपने भय का सामना करें, उससे दो दो हाथ करें
काम, क्रोध, और लोभ ये नर्क के द्वार हैं, इनसे सावधान रहें
हम जैसा सोचते हैं वैसे ही बनते हैं, वही चीज हमें प्राप्त हो जाती है
हमको जीवन में हर चीज ध्यान से करने को कहा जाता है, सो इस ध्यान को हम जरूर सीखें
राग और द्वेस् से उपर उठ कर जीना ही असली जीना है
अपने गुरु या सलाहकार से जुड़े रहें, उनकी बात को जीवन में अपनाएं और महत्व दें
कृष्ण से कोई ना कोई रिश्ता जरूर बनाएं यह रिश्ता माता पिता भाई बहन मित्र या किसी भी रिश्ते के स्वरूप में हो सकता है।अर्जुन ने कृष्ण से मित्रता का रिश्ता बनाया
जिस रिश्ते को हम कृष्ण से बनाते हैं कृष्ण हमारे जीवन की गाड़ी को उस रिश्ते के स्वरूप में आ कर चलाते हैं
अपनी चुनौती में जीवन रथ का सारथी कृष्ण को बनाएं सारथी बनांना मतलब उनके शरण होना है।उनके श्री कृष्ण शरणम् ममः मंत्र का जप करें
जो मन को काबू नहीं करते उनका मन उनके लिए दुश्मन की तरह काम करता है
लगातार कोशिश करने से अशांत मन को भी वश में किया जा सकता है
कोई भी मनुष्य अपने कर्म के फल से भाग नहीं सकता उसे अपने कर्म का फल भोगना ही पड़ता है इसलिए अच्छे कर्म करें
हर स्थिति में समता का व्यवहार करें,न अधिक खुश हों, न अधिक दुखी हो
न यह शरीर हमारा है न ही हम शरीर के मालिक हैं यह शरीर पांच तत्वों से बना है
यह शरीर अग्नि जल वायु पृथ्वी और आकाश इन ५ तत्वों से बना है इसमें ही मिल जाएगा
सिर्फ हमारा कर्म ही हमारा अपना है वही साथ जाता है,इसलिए अच्छे कर्म करने पर ही ध्यान दें
सुख-दुख मान अपमान सर्दी और गर्मी में अपने मन को समान भाव में रखें और समता का व्यवहार करें तभी शांति मिलती है
यह शांति ही परिणित होकर सुख में बदलती है
दान को हमेशा अपना कर्तव्य समझकर दें क्योंकि जो दान बिना किसी स्वार्थ या किसी मान की भावना के किसी जरूरतमंद इंसान को दिया जाता है, वही सच्चा दान है
जीवन एक संघर्ष है, करते रहें
जीवन दुखों का घर है यहां भेस बदले हुए दुख हमें मिलते रहते हैं जिनसे संघर्ष करना ही हमारे जीवन का कर्म और कर्तव्य है जीवन का सार है
सफल और योगी जीवन के लिए कम खाएं यथा शरीर को विश्राम देने की कला भी सीखे
नियंत्रित होकर जीना भी सीखना जरूरी है।
कर्म की फसल वह है जिसे हर इंसान को हर हाल में काटना ही पड़ता है इसलिए अच्छे बीज ही बोये
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हम जितना शांत रह सकते हैं उतनी ही गहराई से अपनी बुद्धि का प्रयोग कर सकते हैं
निंदा से घबराकर अपने लक्ष्य को ना छोड़े क्योंकि लक्ष्य के मिलते ही निंदा करने वालों की राय बदल जाती है
अपने चुनौती के समय सकारात्मक विचारों पर ध्यान केंद्रित करने वाला ही लक्ष्य तक पहुंच पाता है
जीवन का सबसे बड़ा स्रोत हमारे विचार है इसलिए बड़ा सोचें अच्छा और सकारात्मक सोचें
जीतने के लिए हमेशा प्रेरित रहे क्रोध इंसान का सबसे बड़ा शत्रु है क्रोध के बाद पश्चाताप के सिवा कुछ हाथ नहीं लगता क्रोध हमें भ्रमित ही करता है
सेवा करो मगर आशा किसी से ना करें क्योंकि सेवा का फल ईश्वर हमेशा देता है
जब उम्मीदें टूटने लगे तब श्रीमद्भगवद्गीता कृष्ण विचार जरूर पढ़ लेना
दुख की प्राप्ति होने पर जिसके मन में उद्वेग नहीं होता सुखों की प्राप्ति में जो सर्वथा समान भाव से रहता है जिसके मन से राग और द्वेष नष्ट हो गए हैं वही सच्चा सुख प्राप्त करता है
गीता का यह ज्ञान सर्वप्रथम भगवान ने सूर्य को दिया
भगवान कृष्ण के हम भक्त और प्रिय सखा बने तभी हम इस गीता के अद्भुत रहस्य को जान सकते हैं
गीता के अनुसार हमारे और भगवान के कई जन्म होते हैं जिसके बारे में भगवान सब जानते हैं हम मानव नहीं जानते
जीवन की सफलता के और खुशी के लिए अपने आप प्राप्त हुए पदार्थों में सदा संतुष्ट रहना जरूरी है
आलस्य इंसान का सबसे बड़ा शत्रु है
हर्ष और शोक से दूर समता में रहने वाला इंसान ही सच्ची खुशी प्राप्त करता है
कार्य के सफल और असफल होने को जो समान भाव से देखता है वही सच्चा सुख प्राप्त करता है
ज्ञान के द्वारा सब तरह के शोक को दूर किया जा सकता है
इस संसार में ज्ञान के समान पवित्र करने वाला अन्य कोई साधन नहीं है
खुशहाल जीवन के लिए यथा योग्य आहार विहार और यथा योग्य प्रयास करने वाला ही सफल जीवन जीता है
जिसके मन से कामना और वासना खत्म हो जाती है सच्ची शांति वही प्राप्त करता है और तब उसे सुख और खुशी की प्राप्ति होती है
भगवान ने गीता के माध्यम से यह संदेश दिया कि हम मन बुद्धि से जिस किसी भी देवता को पूजते हैं वो हम कृष्ण को ही पूजते हैं इसलिए मन बुद्धि से कृष्ण की ही पूजा करें
संदेश स्वरूप कृष्ण ने यह भी बताया कि हम निरंतर अपना कर्म करें और परमात्मा का समरण भी करें
ओम को परमात्मा ने अपना ही स्वरूप बताया इसलिए हम ओम का चिंतन और ध्यान करें
भगवान के भाव को न जानने वाले मूर्ख लोग मनुष्य का शरीर धारण करने वाले इस कृष्ण को साधारण मनुष्य मानते हैं
उन् लोगों को भगवान मूर्ख बताते हैं
जो भगवान में निश्चय वाले, निरंतर उनके नाम और गुणों का कीर्तन करते हैं उन्हें बार-बार प्रणाम करते हैं उनके ध्यान में युक्त रहते हैं और उन पर पूरा भरोसा रखते हैं उनकी देखभाल स्वयं कृष्ण करते हैं
निर्गुण निराकार की उपासना करने वाले भी अनजाने में उन कृष्ण की ही उपासना करते हैं
जो प्रेमी भक्तजन निरंतर उनका चिंतन और विश्वास करते हैं उनका भजन करते हैं, उनका नित्य निरंतर भजन करने वाले पुरुषों का योगक्षेम वे स्वयं ही प्राप्त करा देते हैं।योग क्षेम का शाब्दिक अर्थ जो उनके पास है उनकी रक्षा जो उनको जरूरत है उसकी आपूर्ति वे स्वयं कराते हैं
श्रद्धा से युक्त जो लोग दूसरे देवताओं को पूजते हैं वह भी कृष्ण को ही पूजते हैं किंतु उनका वह पूजन गीता के अनुसार अविधिपूर्वक और अज्ञान पूर्वक है
जो कोई उनको प्रेम से पत्र पुष्प फल और जल आदि अर्पित करता है भगवान श्रीकृष्ण उनके यह अर्पित किए हुए पदार्थ स्वयं प्रकट होकर प्रीति सहित खाते हैं
गीता में उन्होंने यह भी बताया कि हम जो कर्म करते हैं जो खाते हैं जो हवन करते हैं जो दान देते हैं वो सब हम उनको अर्पण जरूर करें
जो भी विभूतियुक्त ऐश्वर्यायुक्त,कांति युक्त शक्ति युक्त, वस्तु है उस उस को हम उनके तेज के अंश की ही अभिव्यक्ति जाने या उनका ही तेज माने
जो पुरुषों दुख से छूटा हुआ है अर्थात सदैव प्रसन्न रहता हैं वह भगवान को प्रिय है।
जो निंदा स्तुति और प्रशंसा को समान भाव से देखता है वह भगवान को प्रिय है
फिर अंत में भगवान कुछ रहस्य युक्त वचन फिर से अर्जुन से कहते हैं जो हमें जानना चाहिए तू मुझ में मन वाला हो मेरा भक्त बन मेरा पूजन करने वाला हो, मुझ को प्रणाम कर,
परिवर्तन इस संसार की एक व्यवस्था है जिसमें हमारा कल्याण छिपा होता है इसलिए हर परिस्थिति को स्वीकार करें
अंत में संपूर्ण धर्मों को अर्थात संपूर्ण कर्तव्य कर्मों को उनमें त्याग कर केवल एक सर्वशक्तिमान सर्व आधार परमेश्वर की शरण में रह कर कर्म करने की बात को बताया
इस गीता शास्त्र को जब हम पढ़ते हैं तो हम ज्ञान यज्ञ के द्वारा भगवान कृष्ण का पूजन ही करते हैं,इसलिए इसे जरूर पढ़ें
अंत में उनका यह भी कहना है जहां वे स्वयं रहते हैं जहां अर्जुन रहते हैं वहीं पर श्री विजय विभूति और वचन है।जिसका तात्पर्य है समृद्धि लक्ष्मी सफलता यश और कीर्ति वहां निवास करती है।
इस गीता को पढ़कर बार-बार स्मरण कर भी बार-बार खुशी का अनुभव कर सकते हैं
धन्यवाद जय श्री कृष्ण