विश्व जनसंख्या दिवस (world population day)

विश्व जनसंख्या दिवस (world population day) जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए सरकार ने कई कार्यक्रम चलाये,जिसके अंतर्गत जनसंख्या को बढ़ने से रोकने का प्रयास किया गया। इसके लिए व्यापक नए उपायों की खोज और व्यापक स्तर पर प्रचार एवं प्रसार से जनसंख्या में कमी भी आई, और इसके दुष्परिणाम भी उन देश को भुगतने पड़े।

परिवार नियोजन कार्यक्रम का आरंभ सर्वप्रथम पश्चिमी देशों में हुआ जहां ईश्वर, धर्म,लोक परलोक आदि इन बातों को लोग नही मानते और जानते।

वहां के लोगों ने यह विचार किया जिस गतिशीलता से जनसंख्या बढ़ रही है,उसको देखते हुए भविष्य में शायद मानव को खाने को नहीं मिलेगा,रहने के लिए जगह नहीं मिलेगी,और उनका पर्याप्त जीवन निर्वाह भी कठिन होगा। परंतु बाद में जब इस कार्यक्रम के परिणाम को देखा तो पाया,इसकी वजह से मानव और देश को काफी दुष्परिणाम झेलने पड़े।

जनसंख्या वृद्धि को लेकर अन्न की चिंता करने वाले लोग यह भूल जाते हैं,कि जनसंख्या बढ़ने से केवल खाने वाले ही नहीं बढ़ते अपितु,पैदा करने वाले,कमाने वाले भी बढ़ते हैं।व्यक्ति के पास केवल पेट ही नहीं होता,बल्कि दो हाथ दो पैर और एक मस्तिष्क भी होता है,जिनसे वह अपना तो पालन कर ही सकता है,बल्कि अनेक प्राणियों का भी भरण पोषण मानव कर सकता है।

वास्तव में अन्न की कमी तभी आती है,जब मनुष्य काम ना करें,अय्याश बन जाए। आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है अतः जनसंख्या बढ़ेगी तो उनके पालन-पोषण के साधन भी बढ़ते हैं,अन्न की पैदावार भी बढ़ती है,वस्तुओं का उत्पादन और उद्योग धंधे भी बढ़ते हैं।

पृथ्वी पर कुल 70% खेती की जमीन है,जिसमें केवल २०% पर ही खेती हो पाती है,इसका कारण है,और खेती करने वालों की भी कमी है।इसका मतलब हम ये भी समझ सकते हैं,कि जनसंख्या की वृद्धि होने पर अन्न की कमी का प्रश्न ही नहीं उठता।इसके विपरीत अगर इतिहास उठाकर देखै,तो यह पाते हैं,जब-जब,जैसे-जैसे जनसंख्या में वृद्धि हुई,वैसे वैसे ही अधिक पैदा करने वालो की वजह से उत्पाद में भी वृद्धि हुई है।

दूसरी ओर जनसंख्या को नियंत्रित कर यदि यह कहा जाए की,जनसंख्या बढ़ने पर लोगों को जगह मिलने में कठिनाई आएगी,तो विचार करें की सृष्टि करोड़ों,अरबों वर्षों से चली आ रही है,पर कभी, कहीं यह नहीं देखा या सुना,की किसी भी समय जनसंख्या बढ़ने से लोगों को पृथ्वी पर रहने की जगह नहीं मिली हो। जनसंख्या को नियंत्रित करना और जीवन का निर्माण करना मनुष्य के हाथ की बात नहीं है।

जनसंख्या की वृद्धि की ओर तो हमने देखा पर इस ओर ध्यान नहीं दिया की जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ जीवन निर्वाह के साधनों में कैसे वृद्धि की जाये।आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है,फलस्वरूप परिवार नियोजन कार्यक्रम से जनसंख्या वृद्धि तो रुक गई,किंतु इससे देश में रोजगार की विकास की कमी होती दिखाई दी।

1898 में ब्रिटिश एसोसिएशन के अध्यक्ष सर विलियम क्रॉक्स में चेतावनी दी थी की जनसंख्या वृद्धि के कारण पृथ्वी पर जीवन निर्वाह के साधन आगामी 30 वर्ष में समाप्त हो जाएंगे और सभी देशों को कमी का सामना करना पड़ेगा परंतु देखने में यह आता है आज 125 साल बीतने के बाद अन्न की इतनी पैदावार भी उसी अनुरूप बढ़ी और विकास के साधन भी बढ़ते गए।

वास्तव में जीवन निर्वाह के साधनों में कमी होने का संबंध जनसंख्या वृद्धि से नहीं अपितु,जीवन निर्वाह के साधनों में कमी तब आती है जब मनुष्य आलसी और अकर्मण्य बनने के कारण अपनी जिम्मेदारी से काम नहीं करते। वह खर्च तो करते हैं,पर काम करने में उत्साह और अपनी जिमेदारी महसूस नहीं करते,जो कि देश को पीछे ले जाती है। इतिहास उठा कर देखे,तो यह पता चलता है जनसंख्या की कमी से साधनों में कमी नहीं हुई वरन महंगाई और बढ़ती चली गई।

जनसंख्या के तेजी से बढ़ने से उस देश में आर्थिक तेजी आती है,रोजगार के साधन बढ़ते हैं आर्थिक संपन्नता आती है। अगर जनसंख्या में वृद्धि होती है,तो बाजार का आकार बढ़ता है,प्रति व्यक्ति उत्पादन बढ़ता है।किसी भी तरह की आर्थिक कठिनाई का सामना उस देश को नहीं करना पड़ता।

परिवार नियोजन कार्यक्रम अपनाने से तमाम बच्चों तथा जवानों की संख्या कमी हो जाती है,और वृद्धों की संख्या अधिक हो जाती है, जिसके कारण देश की आर्थिक उन्नति रुक जाती है,और देश पिछड़ने लगता है।बच्चों और बूढ़ों का अनुपात असंतुलित होने से देश की सारी व्यवस्था डांवाडोल हो जाती है।

अगर परिवार में एक या दो संतान होती है,तो माता-पिता भी संतान से यही आशा रखते हैं की संतान हमारे पास रहकर हमारी सेवा करें हमारे स्वास्थ्य का ध्यान रखें,हमारे स्वार्थ को पूरा करें,हमारी आवश्यकता की पूर्ति करें ।

देश की रक्षा और कुछ बड़ा कर दिखाने, सेना में भर्ती करने के लिए,उन्हीं माता-पिता के मन में आता है,जिनकी संताने अधिक होती है।

एक या दो संतान होंगी तो घर का काम भी पूरा नहीं होगा फिर कौन फौज में भर्ती होगा कौन शास्त्रों का विद्वान बनेगा,कौन इंजीनियर बनेगा, कौन साधु बनेगा,कौन व्यापार करेगा,कौन फैक्ट्री लगाएगा इस तरह हर जगह कमी दिखाई देने लगेगी।

कुछ लोग यही कहते हैं कि जनसंख्या बढ़ने पर लोग भूखे मरेंगे, पर जानकर का मत है,जनसंख्या कम होने पर,लोग मिलने कम हो जाएंगे।जैसा की देखने में आता है खेती के लिए आदमी कम मिलने लगे हैं,मजदूरों की संख्या घट रही है,भविष्य में जनसंख्या और कम होने से आदमी कहां से मिलेगा, आज भी जो आदमी मिल रहे हैं,वे पैसा दोगुना मांगते हैं,और वे लगन और परिश्रम के साथ काम भी नहीं करना चाहते।

अमेरिका ने एक समय जापान पर जो एटम बम फेंका था 29000 टी एन टी पी शक्ति का था और उसमें लाखों लोग मारे गए परंतु आज 10 करोड़ 20 या इससे भी अधिक टी एन टी पी के शक्तिशाली एटम बम,परमाणु बम बन रहे हैं।अगर किसी कारण से भविष्य में युद्ध लड़ा गया,तो जनसंख्या बड़ी मात्रा में कम हो जाएगी।

इसी तरह यूनान में भी देखा गया जनसंख्या कम होते ही वहां गृहयुद्ध छिड़ गया,फ्रांस को भी अपने विश्व युद्ध में पराजित होना पड़ा, जिसका भी मूल कारण उसकी जनसंख्या का कम होना दिखा।

राजनीतिक दृष्टि से देखा जाए तो जनसंख्या वृद्धि और जनसंख्या की कमी के परिणाम में राजनीतिक शक्ति का हास भी कारण बनती है।

विश्व की सबसे बड़ी शक्ति चाइना और रसिया को सबसे बड़ी शक्ति बनाने में जनसंख्या है।इसके दूसरी और पश्चिमी देशों में जनसंख्या की कमी के कारण,वे पूरी तरह से आदमी के लिए अन्य देशों पर निर्भर हैं।

विकसित देश यही चाहते हैं कि विकासशील देशों की जनसंख्या कम होती जाए,क्योंकि उनकी जनसंख्या वृद्धि को विदेशी,अपने जीवन स्तर और राजनीतिक सुरक्षा के लिए खतरा समझते हैं।उनका उद्देश्य पिछड़े देशों को समृद्ध होने से रोकना है,यही कारण है कि विश्व बैंक तथा पश्चिमी देश,भारत जैसे देशों को इसी शर्त पर कर्जा देते हैं,कि वह जनसंख्या को कम करे,क्योंकि जिस देश की जनसंख्या कम होती है,वह कर्जदार बन जाता है,और उसे फिर,उस देश की गुलामी सहन करनी पड़ती है,उनका आधिपत्य स्वीकार करना पड़ता है।

वर्तमान वोट प्रणाली जनसंख्या के साथ सीधा संबंध रखती है,जिस की संख्या अधिक होगी वही जात या वही लोग उस देश में राज करेंगे,इसलिए भी जनसंख्या को बढ़ने से रोकना उस धर्म का अस्तित्व खत्म करना है।

इसी तरह पारिवारिक दृष्टि से देखा जाए तो जिस परिवार में बच्चों की संख्या अधिक होती है वे परिवार ही अधिक समृद्ध देखे जाते हैं।अधिक बच्चों वाले और कम बच्चे वाले, दोनों प्रकार के परिवार का व्यापक सर्वेक्षण करने पर यह निष्कर्ष देखा गया,की छोटे परिवार वाले बच्चों की अपेक्षा बड़े परिवार वाले बच्चे जीवन में अधिक सफल और तेजस्वी होते हैं।

मनोवैज्ञानिकों का तो यहां तक मानना है,जिस बच्चे को अपने से छोटे अथवा बड़े भाई बहन के साथ खेलने कूदने और परस्पर हंसी विनोद करने का मौका नहीं मिलता उनका भली-भांति मानसिक विकास नहीं होता, वे भौतिक गुणों से भी वंचित रह जाते हैं।

कुल मिलाकर जापान चाइना रसिया आदि देशों में जो उन्नति देखने में आ रही है वह जनसंख्या की वृद्धि के कारण ही है।वहां के लोगों की कर्तव्य परायणता ईमानदारी, परिश्रम, देशभक्ति,आदि गुणों के कारण है।

अगर मृत्यु पर हमारा नियंत्रण नहीं तो जन्म पर नियंत्रण सही नहीं।

धन्यवाद

जय श्री कृष्ण

निर्मल tantia

Nirmal Tantia
मैं निर्मल टांटिया जन्म से ही मुझे कुछ न कुछ सीखते रहने का शौक रहा। रोज ही मुझे कुछ नया सीखने का अवसर मिलता रहा। एक दिन मुझे ऐसा विचार आया क्यों ना मैं इस ज्ञान को लोगों को बताऊं ,तब मैंने निश्चय किया इंटरनेट के जरिए, ब्लॉग के माध्यम से मैं लोगों को बताऊं किस तरह वे आधुनिक जीवन शैली में भी जीवन में खुश रह सकते हैं

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