सुखी जीवन का रहस्य | Secret of happy life
खुशी मुल्यावान क्यों है
सुखी जीवन का रहस्य हर मानव के अंतर्मन में यही कामना होती है कि वह अपने जीवन में अधिकतर खुशियां बटोरे। जीवन के सभी कार्य प्रार्थना से लेकर पूजा ,व्यवसाय से लेकर भोजन व्यवस्था ,वह जो भी काम करता है,जीवन में सुख और खुशियों के लिए ही करता है।
जीवन पर्यंत उसकी यही चेष्टा रहती है कि जीवन में अधिक से अधिक सुविधाओं को कैसे उपलब्ध कराया जाए। किंतु यह कोई नहीं जानता कि जीवन को सुख शांति पूर्वक खुशियों से भर कर जीना व्यक्ति के हाथ में है।यद्यपि हम जीवन को सुख पूर्वक जीना तो चाहते हैं किंतु हम ऐसे कार्य को नहीं कर पाते जिससे जीवन को प्रसन्नता से जिया जा सके।
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इसकी कमी के लिए कौन जिम्मेवार
इसके लिए कई बार यह भी देखा जाता है कि अज्ञानता और शिक्षा में कमी मानव जाति को खुशियों से वंचित रखने में जिम्मेदार है। सुखी जीवन के रहस्य को जानने के लिए हमें सुख को भी जानना और सीखना बहुत जरूरी है
मन की शांति में ही सुख है
हम मानव अपने स्वभाव में काफी समय तक जी सकते हैं।हमारा स्वभाव शांत रहने का है और इस शांति में हम लंबे समय को गुजार सकते हैं।कई बार हम ऐसा देखते हैं जिसके पास मकान,कार बड़ा बिजनेस है वह सुखी होगा। लेकिन उनकी इस संपन्नता में कितनी विपन्नता छिपी है,यह बात हम गहराई से नहीं जान पाते।
उसके जीवन की चुनौतियों और तनाव को हम नहीं जान और देख पाते। उसके जीवन के सुख चैन को हम नहीं जान पाते। बाहरी रूप से संपन्न दिखने वाला व्यक्ति अंदर में घुट घुट कर भी जीता हुआ पाया जाता है, इसलिए बस बाहरी वस्तु से किसी की खुशी का आकलन नहीं करना चाहिए। उसके मन की शांति उसके चेहरे की मुस्कुराहट से उसके सुख को अनुभव करने का प्रयास करना चाहिए।
सिर्फ अपने कर्म की ओर ध्यान दें
जीवन जीने के तरीकों और सुविधाओं के आधार पर खुशी का आकलन नहीं किया जा सकता। यह सुविधाएं तो आती और जाती रहती है। कुछ बातों के जानने से हम जीवन के कल्याण और खुशी के लिए अग्रसर होते हैं। अपने जीवन के हर पल हो हम खुशनुमा बना सकते हैं।
अध्यात्म के स्तर पर इसे ऐसे समझें जिस तरह कोई मानव अपने जीवन में दुख नहीं चाहता फिर भी वह दुख भाग्य वश अपने आप ही उसके जीवन में निर्माण होता है उसी तरह सुख भी हमें अपने कर्मों के आधार पर स्वयं ही प्राप्त होता है। हम सिर्फ अपने कर्मों का ध्यान रखें जीवन में चाहे सुख आए या दुख आए दोनों का स्वागत तहे दिल से करें।
सादगी और सरलता सर्वश्रेष्ठ श्रृंगार
यदि हम जीवन में खुशियां बटोरना चाहते हैं तो सबसे पहला मंत्र है,हम सादगी पूर्वक जीने की कोशिश करें। जैसा कि कहा जाता है सादा जीवन उच्च विचार। हमारे व्यवहार में सादगी, आचरण में श्रेष्ठता, विचारों में पवित्रता ,व्यवहार में विनम्रता और शब्दों में मिठास हो और जीवन की प्रत्येक परिस्थिति का स्वागत आदर पूर्वक करे। जीवन में खुशी हमें श्रेष्ठ आचरण से मिलती है वस्त्र आभूषण और पहनावे से नहीं मिलती,इसलिए जीवन को सरल और सादगी पूर्ण ढंग से बनाया जाए।
सादगी और चरित्र से बढ़कर जीवन का अन्य कोई श्रृंगार नहीं है। ईश्वर ने जो शारीरिक सौंदर्य हमें प्रदान किया है उसे और अधिक सुंदर हम अपने विचार और चरित्र के निर्माण से बना सकते हैं।
सुखी जीवन के लिए सकारात्मकता और विचारों का सौंदर्य
सुखी जीवन के लिए हम वस्त्र आभूषण और कृत्य पदार्थों से सुंदरता पाने की बजाय अपने आचार और विचार की पवित्रता से वास्तविक सौंदर्य के मालिक बने। अपने काया की जगह अपने ह्रदय को सुंदर बनाएं। मन की सुंदरता पर ध्यान दें।
सुखी जीवन के लिए स्वस्थ शरीर
हमारा शरीर जीवन जीने और व्यवस्थाओं को संपादित करने का साधन है। इसके स्वास्थ्य पर ध्यान दें।इसकी सुंदरता पर ध्यान ना दे कर इसके स्वास्थ्य को देखते हुए शरीर को लंबी उम्र देने के लिए अपने आहार-विहार का ध्यान रखें और सुखी जीवन के लिए हृदय की सुंदरता और स्वस्थ शरीर की ओर ज्यादा ध्यान दें।
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अपने काम से प्यार करें
अपने सुखी जीवन के लिए हम अपने कार्य के प्रति ईमानदार बने हम जितना समय अपने काम के लिए देते हैं उससे कुछ न कुछ एक्स्ट्रा देने की प्रयास करें
सुखी जीवन के लिए स्वभाव
सुखी जीवन के लिए हम अपने स्वभाव को के प्रति सजग रहें अपने स्वभाव का समग्र अवलोकन करें।हम समय-समय पर देखें की पूरे सप्ताह में हमने क्या अच्छा और क्या बुरा किया कितनों से प्यार किया कितनों को खुश किया। कितनों के प्रति क्षमा भाव रखे कितनों के प्रति अपशब्द कहे इसका पूरा विवरण सप्ताह में 1 दिन कर ले और अगले सप्ताह उन कमियों को दूर करने का प्रयास करें। लोग हमारे शरीर से प्यार न कर हमारे स्वभाव से प्यार करते हैं। स्वभाव से संस्कार बनते हैं और ये दोनों ही सत्संग से हमें प्राप्त होते हैं।
संतोषी जीवन सदा सुखी
सुखी जीवन का अगला मंत्र है संतुष्ट रहना संतोषी होना और एक कहावत है संतोषी सदा सुखी और अति लोभी ही सदा दुखी। जिसके जीवन में संतोष धन आ जाता है वह अपार सुख का मालिक बन जाता है वह व्यक्ति को जो मिला है जैसा मिला है जिस रूप में मिला है उसे स्वीकार कर खुश रहने का प्रयास करे।
प्रकृति से सीखें दूसरों के काम आना
जीवन में दूसरों के काम आना यह भी सुखी जीवन का एक मंत्र है।इसमें हमारे मन को तो सुकून मिलता ही है साथ ही मानवता कल्याण में भी हम सहयोगी बनते हैं। जिस तरह वृक्ष स्वयं फल नहीं खाते नदियां अपना पानी स्वयं ग्रहण नहीं करती, यह हवाएं हमारे लिए दिनभर मुफ्त में बहती है सूर्य की किरणें हमारे लिए विभिन्न पदार्थों की ऊर्जा स्रोत बन मुफ्त में हमारे लिए रोज निकलती हैं। जिस तरह प्रकृति की सारी शक्तियां मानव कल्याण के लिए ही तत्पर रहती हैं उसी तरह हम मानव भी दूसरों के काम आने और मदद के लिए ही अपना जीवन धारण करें।
सुखी जीवन के लिए व्यवहार
अपने व्यवहार से दूसरों को सुकून दे शांति दे जिससे हमारे ह्रदय में करुणा मैत्री जीव जंतुओं के प्रति दया भाव का जन्म हो और बुरे से बुरे व्यक्ति के प्रति भी मन में उदारता का भाव हो।उसकी विपत्ति में हम काम आये। जो हमारे पास उपलब्ध हो उसमें दूसरों की मदद के लिए तत्परता दिखाएं यही मानव जीवन का सार है और सुखी होने का मंत्र है।
संतुलित जीवन सुखी जीवन
जीवन में खुशी के लिए जीवन का संतुलित होना हर चीज का प्रयोग समय पर करना भी हमें खुशियां देता है।
समतामय जीवन
सुखी जीवन का एक सूत्र यह भी है कि हम अपने जीवन को क्षमता पूर्वक जीने की कोशिश करें।उठापटक तो सभी के जीवन में आती है लेकिन इससे अपने हृदय को आंदोलित ना करें। हर स्थिति में मन में समता और शांति बनाए रखें उस स्थिति को देखें निहारे और समझने का प्रयास करें फिर समाधान की ओर काम करें इसी का मतलब समता है।
परिवर्तन को स्वीकार करें
परिवर्तन को हंसकर स्वीकार करने की कोशिश करें और हर स्थिति में अपने मन के रिमोट कंट्रोल को अपने हाथ में ही रखें। जीवन को सुख से जीने के लिए मन की शांति को सर्वाधिक मूल्यवान मानें। संतोषी जीवन को आदर दे,सादगी से जीने का प्रयास करें, फिजूलखर्ची से बचें,शरीर के सौंदरीयकरण से ज्यादा अपने स्वभाव और मन के सौंदर्यीकरण पर ध्यान दें।
स्वयं को प्रकृति की तरह दयालु बनाएं
प्रकृति की तरह दूसरों को सुख और शीतलता प्रदान करने की आदत बनाएं जिससे हम स्वयं भी खुश रह सकते हैं और हमारे सारे चारों ओर का वातावरण परिवार, समाज और देश भी खुशी का अनुभव कर सकता है।
जय श्री कृष्ण
राधे राधे