क्या है आध्यात्मिकता | What is Spirituality
संसार की सारी प्रगति का कारण हमारी अध्यात्मिक शक्ति ही है, और यह शक्ति मानव के हृदय में ऊर्जा के रूप में निवास करती है । ये ही शक्तियां हमें प्रेरणा देकर कार्य को सफल कराती है। इस दुनिया में जितने भी आविष्कार हुए वह भी ईश्वर की आध्यात्मिक शक्ति के जुड़ कर ही हुए।
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क्या है आध्यात्मिकता | spirituality निवास स्थान कहाँ
हमारे हृदय में उन अदृश्य शक्तियों का वास है जिनकी शक्ति अपार है। हमारा हृदय उन अदृश्य शक्तियों से जुड़ा है। जीवन में जिस किसी ने जो कुछ भी प्राप्त किया है ,उन शक्तियों की वजह से ही किया है। इस अध्यात्मिक शक्ति का प्राकट्य होने पर जब, जहां, जिस रूप में सफलता के लिए जिस चीज की आवश्यकता होती है ,वहां उस रूप में वह प्रकट हो अपने आप ही उस कार्य को पूर्ण करा देती है।
अध्यात्मिक शक्तियों से जुड़ने के क्या परिणाम
उन शक्तियों से जुड़ने से हमें हृदय के धरातल पर विश्वास होता है की हमारे अंदर भी कुछ दिव्यता है, हमारे अंदर तेज प्रकट होने लगता है, हमारी आभा शक्तियां बढ़ने लगती है, हमारी वाणी में मधुरता आने लगती है, हम किसी को भी अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं। इन अलौकिक शक्तियां की वजह से हम किसी भी जटिल कार्य को सहज रूप से कर पाते हैं। हमारे अंदर से भय की निवृत्ति हो जाती है, और हम सदैव प्रसन्न रहने लगते हैं, किसी भी कार्य को अंजाम दे पाते हैं।इसलिए प्रत्येक मनुष्य को अपने जीवन में 15 से 20 मिनट आध्यात्मिक चिंतन में अवश्य समय देना चाहिए।
आध्यात्मिकता में रुचि से ही सच्ची खुशी
अध्यात्मिक ज्ञान से हमारे मन के संशय और अज्ञान का अंधकार दूर होता है। आत्मा में नई नई बात को जानने से खुशी पैदा होती है। इसमें रुचि से मनुष्य जीवन में कुसंग से बच पाता है। मनुष्य धैर्यवान बनता है,और जीवन के सच्चे आनंद को समझ पाता है। जीवन की प्रत्येक परिस्थिति का सदुपयोग कर पाता है।अपने जीवन को खुशियों से भर पाता है।
अध्यात्मिकता से आत्मज्ञान की प्राप्ति
देह रूप से खुश हो जाना खुशी का कोई सार नहीं ,हम सब आत्मा हैं और आत्मा की यात्रा, उसकी शांति और प्रसन्नता के लिए हम सबका आध्यात्मिक शक्तियों से जुड़ना अति आवश्यक है।जब तक हमें यह ज्ञान और अध्यात्मिकता की दिशा बोध समझ में ना आए तब तक हम अधूरे होते हैं। हमें स्वयं को जानने के लिए इस शक्ति से जुड़ने की नितांत आवश्यकता होती है।
अध्यात्म की रुचि जिस दिन, वही हमारा जन्मदिन।
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आत्मा की इस यात्रा में विनाशी और अविनाशी तत्व को जानना ,इसके महत्व और जीवन के लक्ष्य को जानने की जिज्ञासा जिस छन होती है वो ही उस आत्मा का जन्म दिवस होता है। इस जीवन की यात्रा में जिस दिन हम यह सब जान जाते हैं ,और जिस दिन हमारी आध्यात्मिकता में रुचि पैदा होती है, वही हमारा जन्मदिन होता है।
आत्मा के पिता कौन है, अदृश्य शक्तियां और उसकी शक्तियों को जानना यह सब तभी संभव हो पाता है जब अध्यात्म में हमारी रुचि बढ़ती है और,तब ही हमें सच्ची खुशी मिल पाती है। कुल मिलाकर आध्यात्मिकता का मतलब उस दिन समझ आता जब यह समझ में आता है कि शरीर सिर्फ बाहरी मुखौटा या हमारा बाहरी आवरण है ,आत्मा की खुशी ही सच्ची खुशी है।
अध्यात्मिक शक्ति का विशेष प्रभाव
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आध्यात्मिक शक्ति मनुष्य की उन्नति के मुख्य प्रेरणा स्रोत माने जाते है। इन शक्तियों के माध्यम से ही मनुष्य विभिन्न प्रकार की अन्य शक्तियों को प्राप्त कर पाता है। बाधाओं पर विजय प्राप्त कर सिद्धि , सफलता और खुशियों को प्राप्त कर पाता है।इससे ही वह व्यक्ति परमात्मा की शक्ति को अनुभव करता है, जिसे अध्यात्म कहते हैं। इन तथ्यों के जुड़ने के बाद ही उसे यह समझ आता है कि यह संसार चक्र किस तरह चलता है, किस तरह से जीवन में उतार-चढ़ाव, मान अपमान, सुख दुख, आते जाते रहते हैं और वह इन परिस्थितियों में कैसे रहे, कैसे उनको देखें, यह सब सीख पाता है।
अध्यात्मिक शक्ति से जुड़ने के लिए क्या करें।
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आध्यात्मिक शक्तियों से जुड़ने के लिए प्रातः काल अकेले में इनके साथ बैठें।
इन शक्तियों से जुड़ने के लिए प्रातः काल का समय अति उत्तम होता है। उस समय सारी सकारात्मक शक्तियां, ब्रह्मांड में जागृत होती है। इस समय प्रकृति,अदृश्य शक्ति और आध्यात्मिक शक्ति तीनों एक साथ जुड़ कर सारे वातावरण को सक्रिय ऊर्जा से भरे रहती है। सारे ब्रह्मांड में आध्यात्मिक शक्तियों का वातावरण प्रातः काल 4:00 से 6:00 के मध्य देखा जाता है ।इस समय सारा ब्रह्मांड, सारा विश्व, हर्ष और शांति का वातावरण महसूस करता है। इस समय सारे योगी मुनि, सिद्ध पुरुष, उन शक्तियों से जुड़ कर वातावरण में एक दिव्य ऊर्जा फैलाए रहते हैं, जिससे जड़ और चेतन सभी जीव खुशी और ऊर्जा को महसूस करते हैं।
प्रारंभिक अवस्था में कुछ देर जिस नाम में रुचि हो उस नाम को जपे
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इस नाम जप के प्रभाव से अन्य कई शक्तियां उभर कर सामने आती है और हमारा मन धीरे-धीरे इधर उधर से अपना ध्यान हटा कर इस नाम पर टिक जाता है, जो हमें प्रसन्नता का अनुभव करवाता है।
रोजाना कुछ न कुछ देर सत्संग में जाएँ या भक्तों के साथ समय व्यतीत करें।
अध्यात्म में रूचि किसी न किसी ज्ञानी पुरुष के संग से , निरंतर सत्संग को श्रवण करने से होती है। यह आध्यात्मिक ज्ञान एक तरह की सुगंध है, और मनुष्य रूपी जीव पुष्प की इस गंध की ओर आकर्षित होता है,और खुशी महसूस करता है। इस ख़ुशबू से उसकी आत्मा का श्रृंगार होता है।
जिस प्रकार भावना पनपने से आदमी का मन बदल जाता है उसी प्रकार सत्संग में जाने से या किसी भक्त और, ज्ञानी पुरुष के संग से आध्यात्मिक ज्ञान मिलता है ,और उसके प्रभाव से आदमी का अपने जीवन के प्रति दृष्टिकोण बदल जाता है ,उसे अपने जीवन लक्ष्य की यात्रा का अनुभव होता है।इस सत्संग से उसका संपूर्ण जीवन और सोचने का तरीका बदल जाता है और वह सच्ची खुशी प्राप्त कर पाता है।
अन्य कई उपाय रुचि जगाने के
प्रातः काल कुछ देर योगाभ्यास का आनंद प्राप्त करें। अपने आंतरिक गुणों को जानने का प्रयास करें और उसमें कैसे सुधार हो इस बारे में चिंतन करें।अपने जीवन की कमजोरियों और बुराइयों को मिटाने के लिए मनन चिंतन करें।
कुछ देर प्रार्थना करें अदृश्य शक्तियों से दया की असीम शांति का वरदान मांगे।
जीवन में प्रसन्न रहने के लिए अनमोल मित्रों का साथ मांगे।
स्वाध्याय में हमारी रुचि बने इसके लिए ईश्वर से प्रार्थना करें।
इन सब के हमारे जीवन में जुड़ने से हम जीवन की किसी भी परिस्थिति में अपने आप को अकेला नहीं महसूस करते।सदैव प्रसन्नता हमारी जिगरी दोस्त की तरह हमारे साथ रहने लगती है और समाज के लोग भी हमसे जुड़ने का प्रयास करते हैं।
आध्यात्मिक के प्रति कुछ भ्रांतियां
सबसे पहले तो हम यह जान ले की आध्यात्मिक ज्ञान केवल साधु संन्यासियों का विषय नहीं बल्कि हम सब जन सामान्य का विषय है। जनमानस में यह भ्रम फैल गया है की सत्संग और इस अध्यात्मिक ज्ञान की बातें सुनने से हमारी युवा पीढ़ी ,साधु और सन्यासी बन जाएगी। यह हमारी सबसे बड़ी भूल है की कोई भी मनुष्य ,ज्ञान ग्रहण मात्र से बैरागी, या साधु नहीं बन सकता।
आध्यात्मिकता में रुचि रखने की उम्र
लोगों का ऐसा भी मानना है ज्ञान सुनने और सुनाने की उम्र वृद्धावस्था होती है। बचपन में तो आदमी को खेलना कूदना लिखना पढ़ना चाहिए ,युवा अवस्था में मौज करनी चाहिए और अपने घर गृहस्थी को संभालना चाहिए ।बुढ़ापे में या वृद्ध अवस्था में मनुष्य के पास कोई काम की जिम्मेदारी नहीं होती इसलिए जीवन की ढलती शाम में भगवान का ध्यान सत्संग और आध्यात्मिक कार्यों में समय लगाना चाहिए, ताकि मन में सुख शांति बनी रहे। किंतु यह बात प्रमाणित रुप से अगर देखी जाए तो सरासर गलत है अर्जुन ने कृष्ण का संग करके कोई वैराग्य नहीं लिया, वह गृहस्थ में रहे। बाल काल से ही अध्यात्मिक शक्ति या इस मार्ग से जुड़ कर हम अपने संपूर्ण जीवन को प्रसन्नता भरा बना सकते हैं।
पुराने जमाने में हमारे पूर्वज तो जंगल और गुरुकुल आश्रम में अपने पुत्र पुत्री को पढ़ने के लिए भेजते थे जहां उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान ही कराया जाता था। वे अपने जीवन को अति प्रसन्नता से तरोताजा होकर व्यतीत करते थे । जीवन की हर चुनौती का समाधान उन्हें निकालना आता था।
हमारे पूर्वजों का यह मानना था आध्यात्मिक शिक्षा ही ज्ञान का मूल है। प्रसन्नता भरा जीवन जीने के लिए, वे उस को प्रमुख मानकर आने वाली पीढ़ी को उस ज्ञान को दिलाते थे। छोटी उम्र में इसमें रुचि होने से वह अपने जीवन की प्रत्येक परिस्थिति को सफलता का एक अवसर मानते थे। वे चुनौती की स्थिति में अपनी दिशा और अपना मार्ग निकालने की,हर हाल में खुश रहने की कला को सिख पाते थे।
कुल मिला कर अध्यात्मिक शक्ति से छोटी उम्र से जुड़ कर , इसे अपनी दिनचर्या में अपना कर, सारी जिंदगी हम प्रसन्नता से व्यतीत कर सकते हैं। खुशियाँ ही खुशियों भरा अपना जीवन बना सकते हैं।
जय श्री कृष्ण
धन्यवाद