सहनशीलता का गुण | virtue of tolerance
मन की खुशी को स्थाई रखने का सबसे महत्वपूर्ण उपाय,सहनशीलता का गुण को बढ़ाना है। सहनशीलता हमारी शक्ति का सर्वोच्च स्तर है ,इसके विपरीत बदला लेने की भावना हमारी कमजोरी की निशानी है।
सहनशीलता को हम चंदन की तरह भी देख सकते हैं, क्योंकि जो चंदन घिसा जा सके ,वही भगवान को चढ़ता है,बाकी तो किसी काम का नहीं होता।
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सहन करने वाला शहंशाह या सम्राट|
शहंशाह कहा जाता है ,राजा या सम्राट को। ऐसा कौन सा व्यक्ति होगा ,जो कभी राजा या बादशाह नहीं बनना चाहेगा! और इस पद को कोई शक्तिशाली या बुद्धिमान व्यक्ति ही प्राप्त कर पाता है।
अपने क्षेत्र का शहंशाह व्यक्ति जीवन में दूरदर्शी, समझदार, विवेकशील, और सहनशील प्रकृति का होता है।इस उतार-चढ़ाव भरे जीवन में यदि सहनशीलता ना हो तो, व्यक्ति कभी भी बड़ी सफलता, समृद्धि को प्राप्त नहीं कर सकता। सहंनशील व्यक्ति को अपनी खुशी के लिए कभी समझौता नहीं करना पड़ता। कुल मिलाकर शहंशाह वही होता है, जिसमें अंदरूनी ताकत होती है ,और वे ही अपने क्षेत्र के लीडर बन पाते हैं,और खुशी-खुशी अपने जीवन को बिता पाते हैं।
सहनशील व्यक्ति को मकान की तरह समझा जाता है। उसके अंदर सभी बातों को समझने की शक्ति विद्यमान होती है ।दूसरों की छोटी मोटी भूल को वह यूं ही क्षमा कर देता है। क्षमा के गुण की वजह से उसकी मजबूत आत्म स्थिति या बल पर भी कोई फर्क नहीं पड़ता और उनके मन की शांति निरंतर बनी रहती है।
किन गुणों के विकास से बढ़ती है सहनशीलता |
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कम से कम बोलने की आदत (good listener)– इस आदत के विकास से मनुष्य में पूरी तरह से बात को सुन ,समझ कर उत्तर देने की क्षमता बढ़ती है ,जिससे उसमें सहनशीलता का गुण आ जाता है।
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Egoless — कुछ व्यक्तियों में यह देखा जाता है कि वे अपने सामने अन्न किसी के विचार को महत्व नहीं देते ,इसे ही ego कहते हैं । इसके लिए हमें यह समझना चाहिए प्रत्येक व्यक्ति के अपने विचार होते हैं ,और उन विचारों को उसे रखने का अधिकार है, और उसके विचार भिन्न भी हो सकते हैं, और हमें उस व्यक्ति के विचार को भी उसी तरह आदर देना होगा, जिस तरह हम अपनी बातों को रखते हैं ।इससे हमारे ईगो में भी कमी आएगी ,सहनशीलता की वृद्धि होगी, और मन में प्रसन्नता का भाव बना रहता है।
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वास्तविकता को स्वीकारना सबसे बड़ा गुण है, संसार में सदैव परिस्थितियां हमारे अनुकूल नहीं रहती।जिंदगी में उतार-चढ़ाव, सफलता, असफलता ,इन सब को समानता से स्वीकारना पड़ता है ।यह हमारे जीवन का एक हिस्सा होती है। इसको जानने और समझने से हमारे जीवन में सहनशीलता का विकास होता है।
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पूर्वाग्रह कम करें, no perception– अधिकतर हम सब लोग कभी ना कभी इसके शिकार होते हैं। प्रायः हम सब सामने वाले व्यक्ति के प्रति एक सोच बना लेते हैं ,जिस को खत्म करना बड़ा मुश्किल हो जाता है। जैसा दिखाई दे,उसे हम जैसा महसूस करें उसी आधार पर हम उसको समझे ,जिससे हमारी सहनशीलता बढ़ती है।
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प्रतिक्रिया देने के लिए समय को बढ़ाएं— असहनशील व्यक्ति की प्रतिक्रिया का समय बहुत कम होता है, वह किसी भी बात का उत्तर या प्रतिक्रिया देने में बहुत जल्दबाजी करता है, जिसकी वजह से वह उस विषय को पूर्ण रुप से समझ नहीं पाता ।इसलिए धीरे धीरे किसी भी बात पर निर्णय देने, या विचार रखने से पहले भी समय बढ़ाया जाए ,पूरे ध्यान से सुना जाए, समझा जाए ,फिर ही अपनी प्रतिक्रिया दी जाए ,तो इससे भी सहनशीलता के गुण में विकास होता है।
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मैं भी ठीक तुम भी ठीक- इस विचारधारा के अनुसार जीवन शैली का निर्माण करें और सदैव याद रखें कि, सभी मनुष्यों की विचारधारा भिन्न भिन्न हो सकती है, कभी एक समान नहीं हो सकती ।इसलिए किसी की विचारधारा का विरोध ना करें, हमेशा मन को यही समझाएं कि विभिन्नता ही इस जीवन का स्वरूप है। इसके जानने से सफलता और सहनशीलता बढ़ती है।
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सांसो पर ध्यान केंद्रित करें -सांसो पर ध्यान केंद्रित करने से हमारी दिमाग की प्रतिक्रिया को नियंत्रित किया जा सकता है जो हमें सहनशील बनाता है। हम अधिक प्रसन,प्रफुल्लित, उत्साहित और सहनशील बन पाते हैं। हमारे में गंभीरता का विकास होता है जिससे हम अपने आप को शांत महसूस करते हैं।
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ध्यान क्रिया में बैठे – एकांत स्थान में प्रातः काल या रात्रि को सोने से पूर्व आराम से बैठे ।विचारों को आने जाने दें, सांसो के आने और जाने के समय,आंखें बंद करके रखें, धीरे-धीरे हम देखेंगे हमारा मन शून्य की स्थिति में पहुंच जाता है, और हमारी सहनशीलता की सीमा में अचानक परिवर्तन आने लगता है। यहां तक कि रोज आने वाला आवेश तथा नकारात्मक सोच भी खत्म हो जाती है और सहनशीलता का विकास होता है हम प्रसन्न रहने लगते हैं।
सहनशीलता का गुण मनुष्य ईश्वर से सीखे |
ईश्वर की खुशियों पर कभी किसी तरह की आंच नहीं आती।ईश्वर आनंद स्वरूप है। मनुष्य की छोटी-छोटी हरकतों को देखकर भी ईश्वर का मन परेशान नहीं होता, इसलिए उन्हें सच्चिदानंद घन कहा जाता है। इसी ईश्वर के अंश होने की वजह से यह शक्ति हमारे अंदर भी मौजूद है, इसलिए हमें इस संसार के प्रति सहनशील बनना चाहिए।
झुकता है सहनशील|
सहनशील व्यक्ति झुकना जानता है, झुक कर अपनी सब स्थिति पर पाँव रख कर आगे बढ़ना जानता है। जो झुकता है, वह गिरता नहीं।
सहनशीलता कैसे आती है? | लाभ क्या हैं इसके
सहनशीलता के गुण को प्राप्त करने के लिए धीरज, संतोष, मन की शक्ति,विवेक,ईश्वरीय ज्ञान ,और सत्संग से जुडना चाहिए।
जिसके मन में धीरज होता है ,वही जिंदगी की खुशियों को प्राप्त कर पाता है।धीरज वह गुण है, जो मनुष्य के अंदर समझ पैदा कराता है। विवेक के द्वारा जब यह समझ आता है की, समय परिवर्तनशील है, हर परिस्थितियां निश्चित रूप से बदलेगी ,तब वह अपने उत्साह को कभी कम नही होने देता। हममें विवेक की जागृति होती है।
संतोष के द्वारा भी,मानव सहनशील बना रहता है। वह इस बात को अच्छे से जानता है जो मिला है, उसमें प्रसन्नता बनाकर रखने से ही जीवन में खुशियां कायम रह सकती है, जिससे वह संतोष को धारण किये रहता है।
विवेक और विश्वास की शक्ति मनुष्य की अद्भुत शक्ति है ,इससे उसे निर्णय लेने में जागरूकता मिलती है और वह अपनी शांति को बनाए रखता है। शांत रहने से ही इस शक्ति का विकास होता है, जिससे उसमे सहन शक्ति बढ़ती है।
हृदय की विशालता भी व्यक्तित्व की गहराई को प्रकट करती है। जो व्यक्ति गंभीर होता है वह अपने मन की खुशी को लंबे समय तक कायम रख पाता है।ऐसे गंभीर व्यक्तित्व वाले व्यक्ति से मतलब जीवन की प्रतिकूल परिस्थितियों का दृढ़ता से सामना करना ,कम से कम बोलना, और हर स्थिति में संतुष्ट रहना होता है।
सहनशीलता होने से हमारे कई अवगुणों पर पर्दा ढक जाता है ।कई बातें जो उभरकर सामने आने से हमारी खुशियों पर समझौता हो सकता था, उससे भी हम बच जाते हैं।
सहनशीलता को कुछ लोग जिन्हें अनुभव नहीं होता वे कायरता समझ लेते हैं, किंतु सहनशील व्यक्ति अपने आप में शहंशाह होता है ,और वह मौका लगने पर जब सामने वाला नहीं समझता तो उसे उसी की भाषा में समझा कर खुश होने की कला भी जानता है ,अपने आत्मविश्वास और सम्मान को बनाकर रखना जानता है।
सहनशीलता हमें दूसरों के क्रोध रूपी अग्नि से बचाने में कवच का काम करता है। क्यों की जो इसे धारण कर पाता है, वह निश्चित रूप से आगे बढ़ जाता है।
गीता के नायक कृष्ण का अनुभव|
हम सुख, दुख, सर्दी, गर्मी, काम, क्रोध को सहन करें। हम हर उस चीज को सहन करें जो हमारे वश में ना हो,हम हर उस चीज को परिवर्तन करके अपनी खुशी को हासिल करें जो हमारे वश में हो।
सहन करने से कुल मिलाकर |
कुल मिलाकर सहनशीलता अपने आप में हमारे मानसिक विकास के लिए चमत्कारिक शक्ति रूप हमारी शान मैं जीवन के लिए ,गाड़ी के ग्रीस की तरह काम करती है। अतः इस ग्रीस का हमें विकास करना चाहिए। हमें इस पर ध्यान देना चाहिए।
Thank you
Jai sree krishna