क्या है

सत्संग क्या है ?

सत्संग क्या है ?

सत्संग से बिना प्रयास के मन स्वतंत्र हो जाता है।

सत्संग से बिना प्रयास के मन स्वतंत्र हो जाता है। सत्कर्म , सत्चिंतन और सत्चर्चा जीवन भर करते रहने से सत्संग जीवन में आता है ! इसके प्रभाव से हमारे अंदर सदभाव पैदा होने लगता है हम भगवान के भक्त बन जाते है हमारे अंदर शांति एकाग्रता और प्रसन्नता बढ़ने लगती है  दुख का समुल नाश होने लगता है। हमारी समझ बढ़ने लगती है ,हम बुद्धिमान होने लगते हैं। हमारे अंदर की मानसिक शांति, स्थिरता, एकाग्रता संतुलन धर्य और सहनशीलता बढ़ने लगती है। हम अपने मन के संशय को ज्ञान के द्वारा दूर कर पाते हैं।

सत्संग से सफाई

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सत्संग से हम अप‌ने मन के कोने कोने की सफाई करते हैं। बिना  प्रयास के अपने मन को मुक्त का पाते हैं। हमारी निर्णय लेने की क्षमता बढ़ जाती है,हम आत्म निर्भर बनने लगते है। हमारा चिंतन सही होने लगता है!

सत्संग से क्या-क्या लाभ होते हैं?

सत्संग करने से हमारी पाप करने की  वृति मिट जाती हैं! हमें समझ आता है कि दुख दाई स्थिति जीवन में हमें सचेत करने के लिए आती है भगवान ही उस स्थिति को हमारे कल्याण के लिए बनाते हैं !

सत्संग में क्या करना ?

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सत्संग में कोई परिश्रम नहीं इसको करने में सिर्फ मान लेना होता है, इसको करने में किसी अभ्यास की जरूरत नहीं , इससे हमारे व्यक्तित्व का विकास होता है और जीवन में सकारात्मकता आती है ,हम सत्संग के महत्व को समझ पाते हैं ।

सत्संग से हम सत्य का संग करते हैं ,सत्त्संग का ज्ञान हमारे अंदर निश्चितता,निर्भयता आती है और जीवन नि:शोक  बनता है !

सत्संग से क्या होता है

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सत्संग से मन की शांति मानसिक रोगों में राहत मिलती है।जीवन में सद्गुण बढ़ते हैं ।

सत्संग में यह समझ आता है मिली हुई संसार की जो भी समान संपत्ति है वो हमे परिवार और जनमानस की सेवा के लिए मिलती है संसार की चीज हमारे खुद के लिए नहीं है

सत्संग की अहम बातें

सत्संग से हम सीखते हैं की हमें मिले हुए दुखों का कारण किसी को नहीं मानना है ,राग और द्वेष का त्याग करना है ! वासुदेव सर्वम मंत्र का मन ही मन जप करना है ,किसी को बुरा नहीं समझना है ,नहीं तो उसकी बुराई हमारे अंदर आती है।

सत्संग कि मुख्य बात

पर दोष दर्शन से हमें बचना होता है ,जो हम बदल सकते हैं उसे बदलना,जो ना बदल सके उसे हम स्वीकार करें

सत्संग में सिर्फ हमें सुनी हुई बात को मानना और समझना होता है ,और अगर समय रहते हम नहीं मानते तो दुख उठाना पड़ता है ।

सत्संग में हमें समझ आता है की कामना और इच्छा छोड़ने से ही शांति मिलती है !

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जीवन से चिताओं को मिटाने के लिए बुराई को त्यागना सबसे अधिक जरूरी है ,और बुराई को छोड़ना ही सत्संग है ! सत्संग से जीवन के अचूक रहस्य समझ आने लगते हैं,मन को वश में करना और सही सोचना भी इस दौरान हमें समझ आता है

सत्संग कब मिलता है

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परमात्मा की जब विशेष कृपा होती है तभी सत्संग के महत्व को हम समझ पाते हैं !  सत्संग में हमे समझ आता है यहां मेरा अपना कुछ नहीं है ,मुझे किसी से कुछ नहीं चाहिए ,यहाँ सब कुछ भगवान का है और सिर्फ भगवान ही मेरे हैं

सत्संग का असली अर्थ क्या है ?

सत्संग का अर्थ अपने ज्ञान और विवेक से अपना आत्म निरीक्षण करना और सच्ची बात को स्वीकार करना होता है,सत्संग का मुख्य अर्थ यह भी है~~गुरु वचनों को सुनना समझना और फिर उनका आधार सत्संग ही पुरुषार्थ है जो खुद को करना होता है जिसमे हमें किसी को भी बुरा नहीं समझना मुख्य है और यह एक तरह की योग क्रिया भी कही जा सकती है

सत्संग का अर्थ सच्ची बात मान लेना जीवन में लागू कर लेना है। सुनी बात दृढ़ता से स्वीकृत कर लेना ही सत्संग है,जैसे बंद कमरे में कचरा आ ही जाता है और वैसे ही ना चाहते हुए भी जीवन में नकारात्मक विचार आ ही जाता है और सत्संग से उनकी सफाई करनी होती है,सत्संग में सुनी बातों को धारण करना, जीवन में उतरना ही असली सत्संग है

सत्संग का रहस्य

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सत्संग करके हमे मूल रूप से बुराई को छोड़ने का संकल्प करना होता है,बुराई छोड़ने का मतलब जानी बुराई करेंगे नहीं और की हुई बुराई दोहराएंगे नहीं

सत्संग का मुख्य उद्देश्य क्या है?

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सत्संग करने का उद्देश्य  अपनी भूल को मिटाना,अपनी चिताओं को मिटाना और प्रसन्न रहना है।जब हम इस तरह सभी बुराइयों को अपने विवेक से छोड़ देते हैं तो भलाई तो अपने आप ही होने लगती है अच्छे काम अपने आप होने लगते है ,सत्संग भगवान के गोद आने जैसा है ।जब कई जन्मो  का पुण्य उदय होता है  तब हमारा सत्संग में प्रवेश होता है ।जीवन में हम सत्संग जग जाते हैं क्योंकि जन्मो  की काई लगी है ,जैसे गर्म जल से पानी पर पड़ी काई उड़ जाती है।

सत्संग कैसे होगा?

सत्संग भजन कथा कीर्तन प्रवचन आदि संयुक्त साधन करते-करते जब हमारा पुण्य बढ़ाने लगता है तब हमे सत्संग में प्रवेश मिलता है अगर यह सब हम कर रहे हैं तो जो कर रहे हैं तब तक करते रहना है जब तक हमारा सत्संग में प्रवेश नहीं हो जाता।सभी साधना और क्रिया का सार सत्संग है भजन प्रवचन कथा कीर्तन सत्कर्म ,सतकार्य और इन सब सहयोगी साधना की यात्रा के बाद हमारा सत्संग में प्रवेश हो पाता है

सत चर्चा से हमको जीवन के मोल समझ आते है।सत चर्चा और सत्य चिंतन का उद्देश्य हमारे जीवन में सत्संग आए यही प्रार्थना  परम पिता से हमको करनी है क्यों की सत्संग से ही हमारा काम बनेगा

सत्संग का एक और स्वरूप कौन सा है ?

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सत्संग का एक स्वरूप का ध्यान भी है चुप रहना भी है जिसे हमारे यहां मूल सत्संग बताया गया है,लोग इस्से ध्यान भी कहते है

कुछ नहीं करना मूल सत्संग बताया गया है इस कार्य के दौरान हमें अपनी तरफ से कुछ नहीं सोचना है इस मूल साधना से मानसिक शांति होती है ज्ञान ठहरता है ,बुद्धि ठहरती है।ध्यान करते वक्त सामान भूमि पर आसन पर शरीर को सीधी रखकर आराम से बैठ जाए हाथों को अपने गोद में रखकर दृष्टि नासिक के अग्र भाग पर रखें इसके बाद पूरक रेचक कुंभक इन प्राणायाम को  करें।इस तरह प्राणायाम का अभ्यास धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिए।इसे हम मौन साधन भी कहते हैं  और इसी दौरान हृदय में ओम का चिंतन करते रहना चाहिए इस प्रकार प्रतिदिन तीन समय 10-10 बार ओम कार के साथ प्राणायाम का अभ्यास करनी चाहिए इससे प्राण वायु वश में होती है

सत्संग से सीख

सत्संग हमें सिखाता है की अपने परिवार और खुद से जुड़े व्यक्ति को हम परमात्मा का स्वरूप मानकर हमको प्रणाम साधना करना चाहिये परिवार और यहाँ यह समझना है परिवारजन जो जुड़े लोग हैं,वे परमात्मा से मिलने की ट्रेनिंग स्कूल के भगवान है ,जहां अगर हमें रहना आ जाता है तो भगवान हमें खुद ही मिल लेते हैं।

कब सत्संग का लाभ नहीं मिलता

बुराई करते हुए की जाने वाली भलाई भी भेस बदली हुई बुराई ही है ।अगर कोई बुराई करता दिखाई दे तो उसे भी परमात्मा की लीला मानकर प्रणाम करना है

हमे सीखना है हमारी इच्छा की पूर्ति हो भी सकती है नहीं भी हो सकती है किंतु हमारे आवश्यकताओं की पूर्ति अवश्य होगी ,अगर यह समझ आ गया तो हमेशा मौज रहने वाली है

सत्सग का विशेष सार

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सत्संग में हम सीखते हैं स्वस्थ रहने के लिए मन की प्रसन्नता हृदय की निर्मलता आहार विहार के संयम और अपने दैनिक जीवन में बदलाव यानी अपने काम खुद करने की कोशिश और प्रयास करनी चाहिए

हम सब भगवान की फुटबॉल है वह चाहे हमें जिधर भी भेजें हमको खुश रहना है

सत्संग हो क्यो नहीं पता?

सुख भोगने की वृत्ति की वजह से हम सत्संग कर नहीं पाते बुराई करके भी हम खुद को दुखी महसूस नहीं कर पाते हमें दुख नहीं होता, पछतावा नहीं होती इसलिए हम सत्संग नहीं कर पाते ,हमे निंदा में रस आता है सत्संग हम भूल जाते है ,हम अपने दोसों का साथ देते रहते  है

 सत्संग से हम सीखते हैं दुखदाई स्थिति हमें जीवन में चिंतन करने के लिए आती है भगवान ही दुख का वेश बदलकर हमारा कल्याण करने आते हैं इसलिए हमें मिलने वाले दुख का भी स्वागत करना चाहिए, प्रभु का शुक्रिया करना चाहिए अनुकूल परिस्थिति में हम सेवा करें प्रतिकूल में सुख की इच्छा का त्याग करें हम सत्संग की बातों से छोटे-छोटे सुधार कर के ही अपना मन भर लेते है इसलिए हम सत्संग का पूरा फायदा नहीं ले पाते

सत्संग के बाद हमें क्या-क्या देखना चाहिए ?

सत्संग के बाद हमें देखना चाहिए खुद का आत्म निरीक्षण कैसे करना है मेरे अंदर दोष कम हो रहे हैं या नहीं काम क्रोध लोभ मोह माया घट रही है या नहीं मेरे अंदर क्षमता शक्ति बढ़ रही है या नहीं हमारी उदारता और दया बढ़ रही है या नहीं हमारा मन शांत हो रहा है या नहीं हमने बुराई को या बुरी आदत को छोड़ा है या नहीं भगवान और सत्संग की बात वैसे याद हो जानी चाहिए।हम नहीं भूलते की हम पिता या पति हैं

वैसे ही सत्संग प्रयत्न करके हम सभी को करना चाहिए क्योंकि इससे शांति मुक्ति भक्ति तीनों मिलती है ,सत्संग से हम बड़ा आदमी बनते हैं ,स्वस्थ रहते हैं,मन की प्रसन्नता रहती है,आहार विहार में संयम रहता है हृदय में निर्मलता रहती है,जीवन में हमारा करने वाला मुख्य काम भी सत्संग ही है सत्संग से जीवन की सुंदरता और महक बढ़ती है ,जिसने भी जीवन में कहीं से बुद्धि कीर्ति सद्गति ऐश्वर्या या भलाई पाई है वह कहीं ना कहीं सत्संग से ही पाई है प्रभु की कृपा के बिना सत्संग जीवन में नहीं हो पाता संतों और भक्तों के संग से ही जीवन में सत्संग आता है जीवन में आनंद और उत्सव उपरोक्त बढ़ता रहे इसलिए सत्संग करते रहना चाहिए  क्योंकि यह सत्संग और प्रेम जीवन का उद्देश्य है सत्संग इसलिए भी करना है ,सत्संग में ना कोई परिश्रम ना ही कोई ना ही पर आश्रय सिर्फ निर्णय लेना है इसमें किसी तरह का प्रयास और श्रम नहीं होता

रावण ने साधना के सभी मार्ग अपनाये किंतु सत्संग नहीं किया इसलिए उनका पतन हो गया ,इससे हमारा स्वभाव व्यवहार और वाणी विनम्र होती है और  समाज हमें पसंद करने लगते हैं हमारे अंदर भक्ति आती है हम खुश और शांत रहने लगते हैं जीवन में कभी खालीपन नहीं आता हमेशा खुश रहने रहते हैं हम बुराई रहित और अंदरूनी और बाहरी पवित्र होने लगते हैं हमारी अंदरुनी शक्तियों तेज और बढ़ने लगती है हमें जीवन में विश्राम मिलने लगता है हमें जीवन की हर परिस्थिति से सामना करने का मार्गदर्शन मिलता है इस सत्संग से भगवान हमारे वश में हो जाते हैं हम भगवान के गोद हो जाते हैं भक्त और सत्संग सुख की खान है जो हमें संतों और भक्तों के संग करने से ही मिलती है सत्संग ही एक ऐसा साधन है जिसे तत्काल प्रभाव और फल हमारे जीवन में देखने लगता है मिलता है भगवान भी सत्संग भक्तों के पीछे चलते हैं इसलिए हमको परमात्मा से प्रार्थना करनी चाहिए कि वह हमें सत्संग की बातों को जीवन में जोड़ने की शक्ति दे सत चर्चा सत्य चिंतन सत्कर्म यह सभी का मुख्य उद्देश्य है कि जीवन में सत्संग आए सच्ची बात जीवन में स्वीकार कर लेना या मान लेना ही सत्संग है

Nirmal Tantia 

जय श्री कृष्ण

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