कृष्ण का भक्त और उनसे सखा भाव रखने वाला, उनको सबसे प्रिय होता है,और वे उसे ही अपना उत्तम रहस्य बताते हैं। 

कृष्ण के भक्त रोग द्वेष और क्रोध से सर्वदा मुक्त होते हैं। 

कृष्ण के भक्तों को जो कुछ प्राप्त हो जाता है उसी में संतुष्ट रहते हैं, उनमें ईर्ष्या नहीं होती वे हर्ष शोक आदि से मुक्त होते हैं।

सिद्धि और कार्य की असिद्धि  में वे भी सदा खुश रहते हैं। 

उनका मन निरंतर ज्ञान के लिए लालायित रहता है | 

उन्होंने गीता के माध्यम से हमें बताया की हम चुनौती के समय तत्वदर्शी ज्ञानियों के पास जाकर उन्हें दंडवत प्रणाम करें, उनकी सेवा करें, और कपट छोड़कर उनसे अपने जीवन की चुनौतियों के बारे में श्रद्धा पूर्वक प्रश्न करें तो हमें मार्गदर्शन निशिचीत मिलता है। 

कृष्ण ने बताया ज्ञान के समान पवित्र करने वाला इस संसार में कुछ भी नहीं है। 

कृष्ण ने हमें बताया कि हम अपने अज्ञान को दूर करें ज्ञान के द्वारा भीतर के अज्ञान को दूर कर,उसे विवेक रूप रूपी तलवार द्वारा नस्ट कर अपना कर्म करते रहे, यही हमें प्रसन्नता देता है |

रोग और द्वेष से मुक्त होने के लिए हर मनुष्य को कोशिश करना चाहिए इसी से हमें जीवन में मुक्ति मिलती है। 

भगवान कृष्ण का भक्त सभी यज्ञ और तप को भगवान के निमित्त ही मान कर करता है। 

उनका भक्त उन्हें ईश्वर का भी ईश्वर, संपूर्ण प्राणियों का ईश्वर और परम दयालु मानकर शांति का अनुभव करता है और उनकी शरण में ही रहता है। 

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