कार्य की सिद्ध और असिद्धि में जिसकी बुद्धि शांत रहती है, समत्व रहती है, उसमें अनुकूलता ही देखती है, उसकी बुद्धि स्थिर है।

हर हाल में सम बुद्धि में ही अपनी रक्षा का उपाय मानव ढूंढे।

समान बुद्धि युक्त मानव कर्मों के फल को त्याग कर शांत और खुश रह पाता है। 

भांति भांति के वचनों को सुनने से विचलित हुई बुद्धि जब परमात्मा में अचल और ठहर जाती है, तब वह मनुष्य सम्बुद्धि युक्त कहलाता है।

दुखों की प्राप्ति होने पर जिसके मन में उद्रेग नहीं होता,सुखों की प्राप्ति में जो सम रहे, और जिसके राग, भय, और क्रोध नष्ट हो गए हैं, ऐसा मनुष्य सम बुद्धि कहलाते हैं। 

स्थिर बुद्धि मनुष्य किसी भी शुभ या अशुभ वस्तु को प्राप्त कर ना ही प्रसन्न होता है ना ही दुखी होता है, और वह इसी गुण की वजह से सम बुद्धि कहलाता है। 

जब मानव अपनी इंद्रियों के विषय से इंद्रियों को सब प्रकार से हटा लेता है तब वह मनुष्य स्थिर बुद्धि कहलाता है। 

वस्तुओं की आसक्ति स्थिर बुद्धि मानव की बुद्धि को हरण कर लेती है। 

इस स्थिर बुद्धि के लिए मनुष्य इंद्रियों को वश में कर समाहित हुआ उस परम सत्य के परायण बैठे, उसका ध्यान करें तब उस मनुष्य की बुद्धि स्थिर हो जाती है। 

ना जीते हुए मन और इंद्रियों वाले पुरुष में सात्विक बुद्धि नहीं होती, और उस आयुक्त मनुष्य के अंतः करण में भावना भी नहीं रहती,  तथा भावना रहित मनुष्य को शांति नहीं मिलती और शांति रहित मनुष्य को खुशियां नहीं मिलती। 

बुद्धि से परे अर्थात सूक्ष्म बलवान और अत्यंत श्रेष्ठ आत्मा को जानकर बुद्धि के द्वारा मन को वश में कर इस कामना रूप शत्रु को मार डालने से ही शांति और सुख मिलता है। 

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