जो पुरुष सब मनुष्य में द्वेष भाव से रहित, स्वार्थ रहित, सबका प्रेमी, और हेतु रहित दयालु है, जो ममता से रहित, सुख-दुख की प्राप्ति में समान, और है, वह कृष्ण को प्रिय है।
जो व्यक्ति अपराध करने वाले को भी क्षमा करके अभय दान देने वाला, जो निरंतर संतुष्ट, मन और इंद्रियों सहित शरीर को वश में रखता है, कृष्ण में दृढ़ निश्चय रखने वाला, अपना मन कृष्ण में लगाकर रखने वाला मानव कृष्ण को प्रिय है।
जो पुरुष इच्छा रहित, बाहर भीतर से पवित्र, ज्ञानवान, पक्षपात से रहित, और सभी दुखों से छूटा हुआ है, वह मानव कृष्ण को प्रिय है।
जो न कभी हर्षित होता है ना ही द्वेष करता है ना शोक करता है, जो शुभ और अशुभ संपूर्ण कर्म का त्यागी है वह कृष्ण को प्रिय है।
जो शत्रु और मित्र में सम है, मान अपमान में समान है, सर्दी गर्मी को समान रूप से सहन करता है, सुख-दुख आदि में समान रूप से रहता है, वह भक्त कृष्ण को प्रिय है।
जो निंदा स्तुति को समान समझने वाला है, जिस किसी प्रकार से भी शरीर का निर्वाह करने में सर्वदा संतुष्ट होने वाला है, अपने रहने के स्थान में ममता और आसक्ति से रहित है वह मानव भगवान श्रीकृष्ण को प्रिय है।
कृष्ण का कहना है कि तू वो करता है, जो तू चाहता है, जिससे मिलता तुझे वह है जो मैं चाहता हूं , किंतु करना वो शुरू कर जो मैं चाहता हूं, फिर होगा वो जो तू चाहता है।
अंत में यही कहना है हर हाल, हर स्थिति को अपने लिए कल्याणकारी मानना, हर प्राप्त स्थिति को उनके द्वारा भेजा गया उपहार मानना, हम मानव का कर्तव्य है। हम जितना अधिक से अधिक हर परिस्थिति में प्रसन्न रहते हैं ईश्वर की कृपा हम पर उतनी ही बरसती है।
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